इनकम प्रोटेक्शन प्लान के तहत पॉलिसीधारक की अनुपस्थिति में उसके परिवार को अपने जीवन-यापन के लिए किसी अन्य पर निर्भर नहीं होना पड़ता है और नियमित तौर पर परिवार को आय मिलती रहेगी. (Image- Pixabay)

Income Protection Plan के क्या हैं फायदे? क्या वाकई इनकम की गारंटी देती है ये स्कीम?

Income Protection Plan के जरिए अपनी अनुपस्थिति में परिवार की आय सुनिश्चित कर सकते हैं.

Income Protection Plan के क्या हैं फायदे? क्या वाकई इनकम की गारंटी देती है ये स्कीम?

इनकम प्रोटेक्शन प्लान के तहत पॉलिसीधारक की अनुपस्थिति में उसके परिवार को अपने जीवन-यापन के लिए किसी अन्य पर निर्भर नहीं होना पड़ता है और नियमित तौर पर परिवार को आय मिलती रहेगी. (Image- Pixabay)

Income Protection Plan: किसी एक शख्स की कमाई पर अगर पूरा घर निर्भर रहता है तो उसकी अनुपस्थिति में परिवार को भारी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अपनी अनुपस्थिति में नियमित तौर पर परिवार को एक आय प्राप्त होती रही है, इसका प्रबंध अभी से करना बेहतर है. इसे सैलरी प्रोटेक्शन प्लान/इनकम प्रोटेक्शन प्लान के तहत आसानी से किया जा सकता है. इस प्लान को खरीदने के बाद भविष्य में किसी प्रकार की अनहोनी होने पर भी परिवार को नियमित अंतराल पर पर आय होती रहेगी. इनकम प्रोटेक्शन प्लान एक प्रकार का टर्म इंश्योरेंस प्लान है.

Income Protection Plan के फायदे

इनकम प्रोटेक्शन प्लान के तहत पॉलिसीधारक की अनुपस्थिति में उसके परिवार को अपने जीवन-यापन के लिए किसी अन्य पर निर्भर नहीं होना पड़ता है और नियमित तौर पर परिवार को आय मिलती रहेगी. इससे बच्चों की पढ़ाई और शादी, वित्तीय प्लान के कांट्रिब्यूशन, लोन की किश्तें और नए कारोबार के लिए पैसों की कमी आड़े नहीं आएगी. इसके अलावा जैसे वेतन महंगाई के हिसाब से बढ़ती है, वैसे ही नॉमिनी को मिलने वाला बेनेफिट भी बढ़ता रहे, इसका विकल्प चुनते हैं तो नॉमिनी को बढ़ते इंफ्लेशन से भी निपटने में मदद मिलती है.

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कैसे काम करता है इनकम प्रोटेक्शन प्लान

इनकम प्रोटेक्शन प्लान के तहत क्या बेनेफिट मिलेगा, यह हर कंपनी के लिए अलग-अलग हो सकता है. हालांकि बेसिक आइडिया लगभग सभी के प्लान का एक ही है, पॉलिसीधारक के साथ किसी प्रकार की अनहोनी पर उसके परिवार के लिए आर्थिक सहारा कैसे उपलब्ध कराया जाए. यह कैसे काम करता है, इसे एक उदाहरण से समझें.

मान लें कि किसी शख्स ने 35 वर्ष की उम्र में किसी बीमा कंपनी से ऐसा एक प्लान खरीदा जिसका प्रीमियम पेमेंट टर्म सात साल, पॉलिसी टर्म 15 साल है और उसने चुकाए गए प्रीमियम के 110 फीसदी के गारंटीड रिटर्न का प्लान चुना है और वह सालाना करीब 7 हजार रुपये प्रोफिट लें क्या है? प्रीमियम दे रहा है. अब अगर पॉलिसी के चौथे साल उसकी मौत हो जाती है तो नॉमिनी को सालाना करीब 33.7 हजार रुपये मिलेंगे यानी कि हर महीने करीब 2800 रुपये. यह पैसा करीब 10 साल तक मिलता रहेगा.

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क्या है हिन्दू अविभाजित परिवार, कौन खोल सकता है HUF अकाउंट, क्या हैं फायदे? जानिए सबकुछ

हिन्दू अविभाविज परिवार एक इमोशन है, जिसे कि कानूनी मान्यता दी गई है.

हिन्दू अविभाविज परिवार एक इमोशन है, जिसे कि कानूनी मान्यता दी गई है.

HUF न केवल हिन्दू, बल्कि सिख, बौद्ध और जैन भी बना सकते हैं. HUF एक प्रैक्टिस है, जिसे आयकर अधिनियम, 1961 (IT Act) के प् . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : July 01, 2022, 12:44 IST

नई दिल्ली. जब आयकर (Income Tax) की बात आती है तो यह इंडिविजुअल्स, कंपनियों, फर्म्स और अन्य एंटीटीज़ के लिए अलग-अलग होता है. ऐसी ही एक एंटीटी है हिन्दू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family), जिसे कि शॉर्ट फॉर्म में HUF के नाम से जाना जाता है. इसके लिए टैक्स की अलग देनदारियां और छूट प्राप्त होती है.

आज हम आपको इसी के बारे में सबकुछ विस्तार से बताने वाले हैं कि यह क्या है, कैसे बनाया जाता है और इसके फायदे क्या होते हैं. दरअसल, यह भारत का एक ऐसा कॉन्सेप्ट है, जो परिवारों को एक-साथ रहने और अपने अलग-अलग बिजनेस को एक ही परिवार के तहत लाने को प्रेरित करता है. यह एक इमोशन है, जिसे कि कानूनी मान्यता दी गई है.

वर्षों पहले बनाए गए इस कॉन्सेप्ट को लोग आज भी फॉलो करते हैं. और फॉलो करने का सबसे बड़ा कारण है इसके फायदे. यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यवसाय का धन प्रोफिट लें क्या है? और नियंत्रण परिवार के के भीतर बना रहे. चलिए समझते हैं इसके बारे में-

HUF में होता है एक कर्ता

हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) किसी संहिताबद्ध कानून (Codified Law) बनाना नहीं है, बल्कि यह एक प्रैक्टिस है, जिसे आयकर अधिनियम, 1961 (IT Act) के प्रावधानों के तहत एक अलग ‘व्यक्ति’ के रूप में माना गया है. जी हां, अलग व्यक्ति के रूप में.

एक HUF में ऐसे लोग शामिल होते हैं जो एक कॉमन पूर्वज के वंशज हैं. एक व्यक्ति को एचयूएफ में जन्म से अधिकार प्राप्त होता है या फिर वह शादी के माध्यम से HUF में साझेदार बनता है. यह ‘बड़े पहले’ (Eldest First) की अवधारणा पर काम करता है.

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कैसे बनते हैं HUF का कर्ता

कर्ता (Karta) आमतौर पर परिवार का सबसे बड़ा सदस्य होता है. जब कर्ता की मृत्यु हो जाती है या सेवानिवृत्त हो जाता है, तो सबसे बड़ा बच्चा (पुरुष या महिला) एचयूएफ का अगला कर्ता बन जाता है, और एचयूएफ संपत्ति के बंटवारे के बिना हमेशा की तरह जारी रहता है. मतलब एक HUF की संपत्ति का बंटवारा नहीं होता, बल्कि उसक कर्ता बदल जाता है. जो भी बच्चे परिवार में पैदा हुए हैं, वे जन्म से अपने-आप ही एचयूएफ के सह-साझेदार बन जाते हैं.

शादी से सह-साझेदार बन जाती है महिला

जब कोई महिला किसी HUF के किसी सह-साझेदार से विवाह करती है तो वह भी स्वत: HUF की सदस्य बन जाती है. इस तरह महिलाओं के पास दो HUF में अधिकार मिलते हैं. पहला- वे अपने पिता के HUF में एक सह-साझेदार होती हैं और विवाह के बाद अपने पति के HUF में एक सदस्य बन जाती हैं. यहां सह-साझेदार को आप एक जॉइन्ट उत्तराधिकारी कह सकते हैं. इसके उलट, यदि हम पुरुष की बात करें तो वह शादी के बाद महिला के पेरेंट्स के HUF में सह-साझेदार नहीं बन सकता और न ही उसे कोई अधिकार मिलता है.

HUF बनाने के लिए पैतृक संपत्ति की जरूरत नहीं

एचयूएफ बनाने के लिए परिवार का कोई विशेष प्रारूप नहीं होता है, जिसे कि एक संयुक्त परिवार में एक एकल परिवार की तरह ही स्थापित किया जा सकता हो. यही नहीं, एचयूएफ बनाने के लिए किसी पैतृक संपत्ति या विरासत में मिली संपत्ति का होना भी अनिवार्य नहीं है. खास बात यह है कि HUF न केवल हिन्दू, बल्कि सिख, बौद्ध और जैन भी बना सकते हैं. कानूनी रूप से कोई हिंदू, सिख, बौद्ध या जैन परिवार सिर्फ तभी HUF माना जाएगा, जब कोई व्यक्ति बैंकिंग व टैक्स संबंधी दस्तावेजों में खुद को अन्य पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलाकर एक HUF के रूप में दर्ज करवा ले.

किसी भी अन्य व्यावसायिक इकाई (Business Entity) की तरह, HUF आय बनाने के लिए अपना बिजनेस चला सकता है. यह रियल एस्टेट, कीमती धातुओं, शेयर्स और म्यूचुअल फंड सहित किसी अन्य व्यक्ति की तरह अलग से भी निवेश कर सकता है.

फायदे : टैक्स में छूट (Tax benefits)

मनीकंट्रोल की एक खबर के अनुसार, चूंकि एक एचयूएफ एक अलग लीगल एंटीटी है, इसलिए उसे बेसिक टैक्स छूट प्राप्त है. इसे इसके सदस्यों से अलग माना जाता है और इसका अलग पैन कार्ड होता है, जिससे आय का एक अलग प्रवाह बनता है. एक एचयूएफ के सदस्यों को एचयूएफ से प्राप्त आय की किसी भी राशि पर टैक्स से पूरी छूट प्राप्त होती है, जहां HUF की आय में से राशि का भुगतान किया गया हो.

फायदे : लोन और इंश्योरेंस

एक एचयूएफ कुछ शर्तों के अनुसार अपने मैंबर्स को लोन दे सकता है. इसके अलावा, एक HUF आवासीय संपत्ति खरीदने के लिए होम लोन का भी लाभ उठा सकता है और लोन चुकाने के लिए और उस पर दिए गए ब्याज के लिए आईटी अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर लाभ प्राप्त कर सकता है.

जिस तरह से साधारण लोगों को बीमा पॉलिसियों और अन्य निवेश साधनों पर वर्षभर अपने खर्चों के लिए टैक्स पर छूट प्राप्त होती है, ठीक उसी तरह के लाभ एक HUF के लिए भी लागू होते हैं. उदाहरण के लिए, एक HUF अपने व्यक्तिगत सदस्यों के लिए जीवन बीमा प्रीमियम का भुगतान कर सकता है और आईटी अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर लाभ का दावा कर सकता है.

इक्विटी-लिंक्ड पेमेंट स्कीम्स कुछ अन्य निवेश हैं जो इस छूट के लिए पात्र हैं. व्यक्ति, एचयूएफ के माध्यम से, आईटी अधिनियम की इस धारा के तहत लगभग 1.5 लाख रुपये की अधिकतम छूट और कटौती का दावा कर सकते हैं.

फायदे : निवेश (Investments)

एक HUF को आईटी अधिनियम की धारा 80सी के तहत टैक्स का लाभ पाने के लिए टैक्स-सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट और इक्विटी-लिंक्ड बचत योजनाओं (ELSS) में निवेश करने की अनुमति है. हालांकि एक HUF अपने नाम पर एक सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) खाता नहीं खोल सकता है, लेकिन यह अपने सदस्यों के संबंधित PPF खातों में HUF द्वारा जमा की गई राशि के लिए कर कटौती का दावा कर सकता है.

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भारत बॉन्ड ईटीएफ में पैसा लगाने का आज आखिरी दिन, क्या निवेश करना होगा फायदे का सौदा?

भारत बॉन्ड ईटीएफ में निवेश का आखिरी दिन. (फोटो- न्यूज18)

भारत बॉन्ड ईटीएफ को एएए-रेटिंग प्राप्त है. यह एक स्थिर निवेश विकल्प है और इसमें रिटर्न भी कई पारपंरिक इन्वेस्टमेंट ऑप्श . अधिक पढ़ें

  • News18 हिंदी
  • Last Updated : December 09, 2022, 08:10 IST

हाइलाइट्स

यह भारत बॉन्ड ईटीएफ की चौथी किस्त है.
इसमें आपको करीब 7 फीसदी रिटर्न मिलेगा.
इस बॉन्ड की मैच्योरिटी डेट 18 अप्रैल 2023 है.

नई दिल्ली. सरकार के भारत बॉन्ड ईटीएफ के न्यू फंड ऑफर (एनएफओ) की चौथी किस्त में निवेश आज यानी 8 दिसंबर, 2022 को बंद हो जाएगा. अगर आप इसमें निवेश करने के बारे में सोच रहे हैं तो पहले इसे अच्छे से समझ लें और यह जान लें कि इसमें निवेश के क्या फायदे हैं. इस बॉन्ड ईटीएफ के इंडेक्स को एएए-रेटिंग प्राप्त है जो दिखाता है कि क्या काफी स्थिर निवेश विकल्प है.

बात अगर रिटर्न की करें तो ऐसी सिक्योरिटीज में आमतौर पर 7.5 प्रतिशत तक का मुनाफा मिल जाता है. इसकी मैच्योरिटी डेट 18 अप्रैल 2033 है और मोडिफाइड ड्यूरेशन 6.66 साल है. इस पर आपको 6.9 फीसदी यील्ड मिलने का अनुमान है.

लिक्विडिटी
आप एक्सचेंज पर किसी भी समय इसे खरीद-बेच सकते हैं. आप विशेष बास्केट साइज में इसे एएमसी के माध्यम से खरीद-बेच सकते हैं. इसलिए लिक्विडिटी के मामले में यहां कोई परेशानी नहीं नजर आती है.

लागत और टैक्स
इसका एक्सपेन्स रेश्यो 0.0005 फीसदी है. यानी इसकी कॉस्ट बहुत कम है. इसलिए आपको रिटर्न को अधिक-से-अधिक बढ़ाने का मौका मिल जाता है. वहीं, टैक्स की बात करें तो अन्य पारंपरिक निवेश विकल्पों के मुकाबले यह अधिक टैक्स इफीशिएंट है. यहां फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है इसलिए किसी भी लाभ पर कैपिटल गेन टैक्स लगेगा. यह लॉन्ग टर्म होगा या शॉर्ट टर्म ये इस बात पर निर्भर करेगा कि आप इसे 3 साल से कम के लिए अपने पास रखते हैं या अधिक के लिए. 3 साल से अधिक रखने पर 20 फीसदी टैक्स लेगा. अगर उससे पहले बेचा जाता है तो निवेशक जिस टैक्स स्लैब में आता उसी के आधार पर टैक्स देना होगा.

एक्सपर्ट ओपिनियन
क्लियर के संस्थापक अर्चित गुप्ता बताते हैं कि इस पर बॉन्ड की तरह ही टैक्स लगेगा. उन्होंने कहा कि अगर 36 महीने तक इसे रखा गया तो इसे आयकर विभाग लॉन्ग टर्म एसेट की तरह देखेगा. ऐसी सूरत में आपको इंडेक्सेशन बेनिफिट मिल जाएगा. लॉन्ग टर्म गेन पर 20 फीसदी टैक्स लगता है जिसमें सेस और सरचार्ज ऊपर से लगाए जा सकते हैं. लॉन्ग टर्म गेन के लिए सेक्शन 54एफ में छूट दी गई है. उन्होंने कहा कि शॉर्ट टर्म गेन में टैक्स निवेशक के स्लैब पर निर्भर करेगा. इसके ऊपर सेस या सरचार्ज लगाया जा सकता है.

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Office of Profit क्या होता है? हेमंत सोरेन पर आरोप, सोनिया गांधी को देना पड़ा था इस्तीफा

Office of Profit क्या होता है? हेमंत सोरेन पर आरोप, सोनिया गांधी को देना पड़ा था इस्तीफा

डीएनए हिंदीः झारखंड की सियासत में आज का दिन काफी अहम है. लाभ का पद (Office of Profit) मामले में चुनाव आयोग ने सीएम हेमंत सोरेन (Hemant soren) की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राज्यपाल रमेश बैस को भेजी है. राज्यपाल आज इस मामले में फैसला से सकते हैं. अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता जाती है तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा. सूत्रों का कहना है कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन को अयोग्य ठहराते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा की है. चुनाव आयोग की इस सिफारिश के बाद राजधानी रांची में सियासी हलचल तेज हो गई है. आखिर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है और इसे लेकर कानून क्या कहता है, इसे विस्तार से समझते हैं.

क्या होता है 'लाभ का पद' What is Office of Profit?
लाभ का पद उसे कहते हैं जब कोई व्यक्ति सरकार की ओर से किसी भी तरह की सुविधा या लाभ उठा रहा हो. ऐसे करते हुए वह सदन का सदस्य नहीं रह सकता है. मतलब एक साथ जगह का लाभ नहीं ले सकता है. ऐसे में उस शख्स को किसी एक पद को छोड़ना पड़ता है.

क्या कहती है लोक प्रतिनिधियों के आचरण पर है 1951 की धारा 9A
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए लोकसेवकों को भ्रष्टाचार के लिए उन पर कार्रवाई करने का प्रावधान देती है.
इसमें कहा गया है कि 'भ्रष्टाचार या अभक्ति के लिए पदच्युत होने पर निरर्हता-(1) वह व्यक्ति, जो भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण करते हुए भ्रष्टाचार के कारण या राज्य के प्रति अभक्ति के कारण पदच्युत किया गया है, ऐसी पदच्युति की तारीख से पांच वर्ष की कालावधि के लिए निरर्हित होगा. जाहिर है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए के तहत हेमंत सोरेन को उनके पद से हटाया जा सकता है.

क्या कहता है संविधान?
विधायकों के लिए संविधान में लाभ के पद का जिक्र किया है. जिसपर रहते हुए कोई व्यक्ति विधानसभा का सदस्य नहीं हर सकता है. संविधान के अनुच्छेद 191(1)(ए) में इसका जिक्र है. इसके मुताबिक अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर पाया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है. अगर राज्य सरकार कोई कानून बनाकर किसी पद को 'लाभ के पद' के दायरे से बाहर रखती है. तो विधायकों की सदस्यता अयोग्य नहीं ठहराई जा सकती है.

संसद में 'लाभ का पद'
'लाभ का पद' का मामला संसद (लोकसभा और राज्यसभा) और राज्यों की विधानसभा दोनों में आ सकता है. संविधान में राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों के लिए भी लाभ के पद का जिक्र है. संविधान के अनुच्छेद 102 (1)(ए) में लाभ के पद के बारे में बताया गया. इसमें कहा गया है कि संसद के किसी सदन का सदस्य होने के लिए जरूरी है कि वह किसी भी तरह के पद पर ना हो. इसमें कहा गया है कि सांसद या विधायक ऐसे किसी भी पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या दूसरे फायदे मिलते हों. अगर संसद में किसी सदस्य के लाभ के पद का मामले सामने आता है तो उसमें राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा. अनुच्छेद 103 के मुताबिक इस संबंध में राष्ट्रपति चुनाव आयोग से सलाह ले सकते हैं.

यूपीए सरकार लाई थी कानून
यूपीए-1 सरकार को कार्यकाल में लोकसभा में लाभ के पद की व्याख्या के लिए एक बिल पास किया था. 16 मई 2006 को पास किए गए इस बिल में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद समेत 45 पदों को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखा गया था.

सोनिया गांधी की गई थी सदस्यता
साल 2006 में यूपीए सरकार में सोनिया गांधी के खिलाफ 'लाभ का पद' का मामला सामने आया था. सोनिया गांधी तब रायबरेली से सांसद थीं. इसके अलावा वह मनमोहन सिंह की सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष भी थीं. तब सोनिया गांधी को भी लाभ का पद होने की वजह से लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि सोनिया गांधी दोबारा रायबरेली से चुनकर संसद पहुंची थीं.

जया बच्चन की भी गई थी सदस्यता
लाभ का पद मामले में राज्यसभा सांसद जया बच्चन की भी सदस्यता जा चुकी है. 2006 में उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष भी थीं. इस प्रोफिट लें क्या है? कारण उनकी सदस्यता चली गई.

हेमंत सोरेन के पास हैं ये विकल्प?
अगर राज्यपाल रमेश बैस लाभ का पद मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ कोई फैसला लेते हैं तब भी उनके पास कुछ विकल्प होंगे. वह राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. अयोग्य करार दिए जाने के बाद वह सीएम पद से इस्तीफा देकर दोबारा शपथ ग्रहण कर सकते हैं. उनके पास छह महीने के भीतर दोबारा चुनाव जीतकर विधानसभा सदस्य बनने का मौका होगा. इसके अलावा वह अपनी मां रूपी सोरेन और पत्नी कल्पना सोरेन में किसी एक को सीएम बना सकते हैं.

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राष्ट्रीय पार्टी बनने पर AAP को दिल्ली में मिलेगा मुफ्त में बंगला, जानें और क्या-क्या फायदे

जब कोई पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बनती है तो उसे भारत के चुनाव आयोग की तरफ से दिल्ली में केंद्रीय दफ्तर बनाने के लिए चुनाव आयोग मुफ्त में या तो कोई भवन देता है या फिर जमीन मिलती है।

राष्ट्रीय पार्टी बनने पर AAP को दिल्ली में मिलेगा मुफ्त में बंगला, जानें और क्या-क्या फायदे

गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी को भले ही करारी हार झेलनी पड़ी है, लेकिन अरविंद केजरीवाल इस बात से खुश नजर आ रहे हैं कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बनने जा रही है। इसके लिए उन्होंने गुजरात की जनता को धन्यवाद दिया है। चुनाव आयोग के मुताबिक, किसी भी दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करने के लिए तीन शर्तें हैं। इन शर्तों को पूरा करने के बाद उसे कई तरह की सुविधाएं दी जाती हैं, जिसमें दिल्ली में केंद्रीय कार्यालय खोलने के लिए मुफ्त की सरकारी जमीन या फिर कोई सरकारी बंग्ला शामिल है।

चुनाव आयोग की शर्तों के मुताबिक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी दल को कम से कम 4 राज्यों में 6 प्रतिशत वोट प्राप्त हों। दूसरी शर्त यह होती है कि अगर वह पार्टी लोकसभा की दो प्रतिशत याी 11 सीटें जीत जाती है तो भी उसे यह दर्जा मिल सकता है। तीसरी शर्त प्रोफिट लें क्या है? यह कि उस पार्टी को कम से कम चार राज्यों में राज्य पार्टी का दर्जा प्राप्त हो। यह दर्जा उसे तब मिलता है जब वह विधानसभा में कम से कम दो सीटें जीत प्रोफिट लें क्या है? जाती है।

आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है। इसके अलावा आप के गोवा और अब गुजरात में भी विधायक हैं। आम आदमी पार्टी ने तीन में से दो शर्तों को पूरा कर लिया है। उसके पास इन चार राज्यों में छह प्रतिशत से अधिक वोट भी हैं। हालांकि, गुजरात में स्टेट पार्टी का दर्जा मिलना अभी बाकी है। इस बात की संभावना है कि गुजरात में जैसे ही राज्य पार्टी का दर्जा मिलता है कि उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी मिल जाए।

राष्ट्रीय पार्टी बनने के क्या हैं फायदे?
1. जब कोई पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बनती है तो उसे भारत के चुनाव आयोग की तरफ से दिल्ली में केंद्रीय दफ्तर बनाने के लिए चुनाव आयोग मुफ्त में या तो कोई भवन देता है या फिर जमीन मिलती है। आम आदमी पार्टी के पास भी बीजेपी कांग्रेस की तरह दिल्ली में केंद्रीय कार्यालय होगा। फिलहाल आप ने अपनी ही सरकार से दिल्ली में ऑफिस के लिए किराये पर जमीन ले रखा है।

2.आम आदमी पार्टी का चुनाव चिह्न झाड़ू सदा के लिए उसके लिए आरक्षित हो जाएगा।

3. पार्टी चुनाव प्रचार के लिए अपने 40 स्टार कैंपेनपर को उतार सकती है, जिनका खर्चा कैंडिडेट्स के खर्चे से बाहर होगा।

4. दूरदर्शन पर प्रचार के लिए आम आदमी पार्टी को एक निर्धारित समय मिलेगा।

आपको बता दें कि अभी देश में कुल आठ राष्ट्रीय पार्टियां हैं। इनमें बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, टीएमसी, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम और एनपीपी शामिल है।

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