इस प्रकार वित्तीय लेखांकन के निम्नलिखित मुख्य कार्य हैं :
आर्थिक बाजार, बाजार, मांग, मांग का नियम, बाजार के प्रकार
आर्थिक बाजार आर्थिक विश्लेषण के प्रकारों का वर्गीकरण क्या होता है, मार्केट कितने प्रकार के होते है, आर्थिक बाजार की परिभाषा प्रकार, बाजार के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए, एकाधिकार बाजार क्या है, अल्पाधिकार बाजार क्या है, प्रतिस्पर्धी बाजार क्या है, मांग क्या है, मांग का नियम, आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं, UPSC, PCS notes in Hindi-
Table of Contents
आर्थिक बाजार
बाजार (Market)
बाजार से तात्पर्य अर्थव्यवस्था का वो विशेष क्षेत्र है, जहां मुख्य रूप से मांग एवं पूर्ति के कारक काम करते हैं तथा क्रय-विक्रय की गतिविधियाँ निष्पादित की जाती हैं। आर्थिक बाजार को समझने के लिए मांग एवं पूर्ति को जानना आवश्यक है।
मांग (Demand)
मांग क्रेताओं या खरीदने वालों द्वारा बनायी जाती है।
मांग का नियम (law of demand)
मांग का नियम यह कहता है कि यदि बाजार के अन्य सभी पहलुओं को स्थिर रखा जाए तो कीमतों के गिरने पर मांग बढ़ने लगती है।
मांग वक्र (Demand Curve)
मांग वक्र क्रेताओं के व्यवहार पर निर्भर करता है। नीचे चित्र में मांग वक्र को दर्शाया गया है। इसमें दो बिन्दुओं A 1 तथा A 2 बाजार की दो भिन्न स्थितियों को बताते हैं।
बाजार के प्रकार (Type of Market)
1. एकाधिकार बाजार (Monopoly Market)
इस तरह के बाजार आर्थिक विश्लेषण के प्रकारों का वर्गीकरण में केवल एक ही पूर्तिकर्ता होता है। एसी स्थिति में पूर्ति कम तथा मांग ज्यादा होती है। एकाधिकार बाजार में विक्रेता को अधिक फायदा होता है तथा उपभोक्ता के पास अन्य कोई विकल्प नहीं होता। 1990 के पहले भारत में कुछ इसी तरह की बाजार प्रणाली थी।
2. अल्पाधिकार बाजार (Duopoly Market)
यह बाजार एकाधिकार की तरह ही है बस इसमें फर्क यह है कि इसमें एक से अधिक पूर्तिकर्ता होता है। इसे सीमित पूर्तिकर्ता बाजार भी कहा जाता है।
3. प्रतिस्पर्धी बाजार (Competitive Market)
इस तरह के बाजार में पूर्तिकर्ता एवं उपभोक्ता दोनों ही बहुल मात्रा में होते हैं। जब कई पूर्तिकर्ता बाजार में उपस्थित होते हैं तब उपभोक्ता के पास कई विकल्प रहते है, जिससे की उपभोक्ता का अधिक फायदा होता है।
बाजार का अर्थ एवं वर्गीकरण
परंतु अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का अर्थ इससे अलग है। अर्थशास्त्र के अंतर्गत बाजार शब्द का आशय उस सम्पूर्ण क्षेत्र से है। जहां तक किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता फैले होते हैं तथा उनमे वस्तुओं के खरीदने और बेचने की स्वतंत्र प्रतियोगिता होती है जिसके कारण वस्तु के मूल्य में एकरूपता की प्रवृत्ति पाई जाती है। उसे बाजार कहते है। अर्थशास्त्र में बाजार का वर्गीकरण:-
निम्नलिखित दृष्टिकोण से किया जाता है।
1. क्षेत्र की दृष्टि आर्थिक विश्लेषण के प्रकारों का वर्गीकरण से
2. समय की दृष्टि से
3. कार्यों की दृष्टि से
4. प्रतियोगिता की दृष्टि से
5. वैधानिकता की दृष्टि से
दोस्तों यहाँ पर हम केवल क्षेत्र की दृष्टि से, समय की दृष्टि से, कार्यों की दृष्टि से बाजार का वर्गीकरण के बारे में जानेंगे।
1. क्षेत्र की दृष्टि से:- क्षेत्र की दृष्टि से बाजार के वर्गीकरण का आधार है कि वस्तु विशेष के क्रेता और विक्रेता कितने क्षेत्र में फैले हुए हैं यह चार प्रकार का होता है।
लेखांकन के प्रकार या शाखाएँ (Types or Branches of Accounting)
(1) वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting),
(2) लागत लेखांकन (Cost Accounting),
(3) प्रबन्ध लेखांकन (Management Accounting)
(1) वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting) – वित्तीय लेखांकन वह लेखांकन है जिसके अन्तर्गत वित्तीय प्रकृति वाले सौदों को लेखाबद्ध किया जाता है। इन्हें सामान्य लेखाकर्म भी कहते हैं और इन लेखों के आधार पर लाभ-हानि या आय विवरण तथा चिट्ठा (तुलन-पत्र) तैयार किया जाता है।
लेखांकन की अन्य शाखाएँ (Other Branches of Accounting)
कर लेखांकन (Tax Accounting) – भारत और अन्य देशों में सरकारी काम-काज के लिए कई प्रकार के कर लगाये जाते हैं, जैसे-आयकर, सम्पदा कर, बिक्री कर, उपहार कर, मृत्यु कर, आदि। कर व्यवस्थाओं के लिए विशेष प्रकार की लेखांकन पद्धति अपनायी जाती है। कर व्यवस्थाओं आर्थिक विश्लेषण के प्रकारों का वर्गीकरण के अनुसार रखे जाने वाले लेखांकन को कर लेखांकन कहा जाता है।
सरकारी/राजकीय लेखांकन (Government Accounting) – केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार एवं स्थानीय सत्ताएँ (जैसे-नगर निगम, नगरपालिका, जिला बोर्ड, आदि) जो लेखांकन पद्धति अपनाती हैं, उसे सरकारी लेखांकन कहा जाता है। सरकार का उद्देश्य प्रशासन करना और विभिन्न विभागों के कार्यों को अच्छी प्रकार चलाना होता है। सरकार अपने आय-व्यय के लिए बजट बनाती है। सरकारी लेखों में लेन-देनों का वर्गीकरण प्रशासनिक क्रियाओं और लेन-देनों की प्रकृति के वर्गीकरण के आधार पर किया जाता है।
आउटकम बजट
आउटकम बजट एक नए प्रकार का बजट है। इसके अन्तर्गत साधनों के साथ-साथ उन लक्ष्यों को भी निर्धारित कर दिया जाता है, जिन्हें प्राप्त करना आवश्यक माना जाता है। इस बजट के अन्तर्गत एक वित्तीय बर्ष के लिए किसी मंत्रालय अथवा विभाग को आबंटित किए गए बजट मैं मूल्यांकन किए जा सकने चाले भौतिक लक्ष्यों का निर्धारण इस उद्देश्य से किया जाता है, जिससे बजट के क्रियान्वयन को परखा जा सके।
आउटकम बजट सामान्य बजट की तुलना में एक जटिल प्रक्रिया हैं, जिसमे वित्तीय प्रावधानों को परिणामों के सन्दर्भ में देखा जाना होता है।
भारत में इसकी शुरूआत वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने वर्ष 2005 में की थी
सन्तुलित बजट
यह एक आदर्श बजट है, जिसे व्यवहार में लाना अत्यंत कठिन है, सन्तुलित बजट में विभिन्न क्षेत्रों का समान अनुपात में आबंटन किया जाता है तथा इसमें व्यय एवं प्राप्ति का अन्तराल सीमित होता है, जिसके परिणामस्वरूप बजट के अनुमानित घाटे एवं वास्तविक घाटे में भी अन्तर नहीं होता।
वह बजट जो महिला और शिशु कल्याण को ध्यान मई रखकर बनाया जाता है उसे लैंगिक बजट कहा जाता है. यह बजट महिला विकाश और सशक्तिकरण के योजनाओं के लिए राशि सुनिश्चित करता है.
शुन्य आधारित बजट
यह बजट गत वर्षों के आंकड़ों को आधार न मानकर शुन्य को अधर मानते हुए बनाया जाता है. इस बजट को तब अपनाया जाता है जब आम बजट घाटे मई चलने लगता है. यह बढ़ते घटे को अंकुश लगाने मई सहायक होता है.
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Sheshan Pradhan is a blogger and author at pscnotes.in. He has published various articles in leading news and laws websites including livelaw.in and barandbench.com.
आर्थिक विश्लेषण के प्रकारों का वर्गीकरण
विज़न
पोषण, पारिस्थितिकी और आजीविका सुरक्षा में सुधार के लिए राष्ट्रीय परिवेश में बागवानी के सर्वांगीण एवं त्वरित विकास का दायित्व बागवानी संभाग को सौंपा गया है।
मिशन
बागवानी में प्रौद्योगिकी आधारित विकास
लक्ष्य
बागवानी में राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान और विकास कार्यक्रम का नियोजन, सहयोग और निगरानी के साथ इस क्षेत्र में ज्ञान रिपोजटिरी की तरह कार्य करना।
संगठनात्मक ढांचा
बागवानी संभाग का मुख्यालय कृषि अनुसंधान भवन-।।, पूसा कैम्पस, नई दिल्ली में स्थित है। इस संभाग में दो कमोडिटी/सबजेक्ट विशिष्ट तकनीकी विभाग (बागवानी । और ।। के अलावा) और प्रशासन विंग, संस्थान प्रशासन-V विभाग है। उपमहानिदेशक (बागवानी) के नेतृत्व में कार्यरत इस संभाग में दो सहायक महानिदेशक, दो प्रधान वैज्ञानिक और एक उपसचिव (बागवानी) भी शामिल हैं। भा.कृ.अनु.प. का बागवानी संभाग 10 केन्द्रीय संस्थानों, 6 निदेशालयों, 7 राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्रों, 13 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं और 6 नेटवर्क प्रायोजनाओं/प्रसार कार्यक्रमों के जरिये भारत में बागवानी अनुसंधान पर कार्य कर रहा है।
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