Fitch India Forecast: इस साल 7% रहेगी देश की ग्रोथ रेट, लेकिन अगले दो साल के लिए विकास दर अनुमान में कटौती क्यों?

डॉलर की मजबूती के क्या फायदे और नुकसान

करीब एक साल से डॉलर की कीमत का लगातार बढ़ना जारी है. ब्रिटेन से लेकर, अटलांटिक पार के देशों और दक्षिण कोरिया से लेकर पूरे प्रशांत के चारों ओर डॉलर सिर चढ़ कर बोल रहा है. डॉलर की कीमत का असर पूरी दुनिया पर होता है.

यूरो और जापानी येन समेत दुनिया की छह बड़ी मुद्राओं से जुड़े सूचकांक में शुक्रवार की बढ़ोत्तरी के साथ डॉलर बीते दो दशकों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है. बहुत से पेशेवर निवेशकों को इसके जल्दी नीचे जाने के आसार नहीं दिख रहे हैं.

जो लोग प्रमुख मुद्रा जोड़े क्या हैं कभी अमेरिका की सीमा से बाहर नहीं गये उन पर भी डॉलर की कीमत के बढ़ने का असर होगा. आखिर डॉलर की कीमत इतनी ज्यादा क्यों बढ़ रही है और इसका निवेशकों और आम लोगों पर क्या असर होगा?

डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है?

एक डॉलर से पहले की तुलना में अब दूसरी मुद्राएं ज्यादा खरीदी जा सकती हैं. जापान के येन को ही लीजिये. एक साल पहले एक डॉलर के बदले 110 येन से थोड़ा कम मिलता था वह आज 143 येन मिल रहा है यानी 30 फीसदी से ज्यादा. अमेरिकी डॉलर की मजबूती का सबसे ज्यादा असर यहीं दिख रहा है.

विदेशी मुद्रा का भाव एक दूसरे की तुलना में लगातार बदलता रहता है क्योंकि बैंक, कारोबार और व्यापारी उन्हें पूरी दुनिया में टाइमजोन के हिसाब से खरीदते और बेचते रहते हैं. यूएस डॉलर इंडेक्स यूरो, येन और दूसरी प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कीमत आंकता है. यह सूचकांक इस साल 14 फीसदी से ज्यादा बड़ गया. निवेश के दूसरे माध्यमों की तुलना में यह ज्यादा आकर्षक दिख रहा है क्योंकि बाकियों के लिये तो यह साल अच्छा नहीं रहा. अमेरिकी शेयर बाजार 19 फीसदी नीचे है, बिटकॉइन ने अपनी आधी कीमत खो दी है और सोना 7 फीसदी नीचे गया है.

डॉलर मजबूत क्यों हो रहा है?

अमेरिकी अर्थव्यवस्था दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अच्छा प्रदर्शन कर रही है और यही डॉलर की मजबूती का कारण है. महंगाई की दर ऊंची है, रोजगार की स्थिति मजबूत है और सेवा क्षेत्र जैसे अर्थव्यवस्था के दूसरे सेक्टरों का भी हाल अच्छा है. इन सब ने धीमे पड़ते निर्माण क्षेत्र और कम ब्याज दर में अच्छा करने वाले सेक्टरों से उपजी चिंताएं दूर की हैं. इसके नतीजे में व्यापारी उम्मीद कर रहे हैं कि फेडरल रिजर्व ब्याज बढ़ाते रहने का अपना वादा निभाता रहेगा और कुछ समय के लिये प्रमुख मुद्रा जोड़े क्या हैं यह व्यवस्था लागू रहेगी. इसके सहारे ऊंची महंगाई दर का सामना करने की तैयारी है जो 40 सालों में फिलहाल सबसे ऊंचे स्तर पर है.प्रमुख मुद्रा जोड़े क्या हैं

इन सब उम्मीदों ने सरकार के 10 सालों के सरकारी प्रतिभूतियों के राजस्व में एक साल पहले के 1.33 फीसदी की तुलना में 3.44 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.

सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे?

जो निवेशक अपने पैसे से ज्यादा कमाई करना चाहते हैं उनका ध्यान लुभावने अमेरिकी बॉन्ड की तरफ गया है. दुनिया भर के निवेशक उनकी ओर जा रहे हैं. फेडरल बैंक की तुलना में दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक इस समय निवेश आकर्षित करने में ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाओं का हाल अच्छा नहीं है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने अपने प्रमुख दर में अब तक की सबसे ज्यादा 0.75 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है. दूसरी तरफ फेडरल रिजर्व अपनी दर इस साल इसी मात्रा में दो बार बढ़ा चुका है और अगले हफ्ते इसे एक बार और बढ़ाने की उम्मीद की जा रही है. कुछ लोगों को तो उम्मीद है कि मंगलवार को महंगाई के बारे में जो रिपोर्ट आई है उसे देखने के बाद पूरे एक प्रतिशत की भी बढ़ोत्तरी हो सकती है.

यूरोप और दुनिया के दूसरे हिस्सों में 10 सालों के सरकारी प्रतिभूतियों पर अमेरिका की तुलना में कम राजस्व हासिल हुआ है. मसल जर्मनी में 1.75 फीसदी तो जापान में केवल 0.25 फीसदी.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसे दुनिया भर में व्यापार या विनियम के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है। अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन आदि विश्व की कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्राएँ हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा को आरक्षित मुद्रा के रूप में भी जाना जाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) ने दुनिया भर की 180 प्रचलित मुद्राओं को मान्यता प्रदान की है और अमेरिकी डॉलर भी इन्हीं में से एक है, परंतु खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश का प्रयोग मात्र घरेलू स्तर पर ही किया जाता है।
    • विश्व भर के बैंकों की डॉलर पर निर्भरता को वर्ष 2008 के वैश्विक संकट में स्पष्ट रूप से देखा गया था।
    • आरक्षित मुद्रा के रूप में
      • अंतर्राष्ट्रीय क्लेम को निपटाने और विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से दुनिया भर के अधिकांश केंद्रीय बैंक अपने पास विदेशी मुद्रा का भंडार रखते हैं।
      • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है। आँकड़ों के मुताबिक, 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी ज्ञात केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 61 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी डॉलर का है।
      • अमेरिका डॉलर के बाद यूरो को सबसे लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना जाता है, विदित हो कि वर्ष 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा यूरो का है।
      • गौरतलब है कि वर्ष 2010 से जापानी येन (Yen) की आरक्षित मुद्रा के रूप में भूमिका में 5.4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि चीनी युआन (Yuan) और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है, यद्यपि यह अभी मात्र 2 प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करता है।

      डॉलर के विकास की कहानी

      • उल्लेखनीय है कि पहला अमेरिकी डॉलर वर्ष 1914 में फेडरल रिज़र्व बैंक द्वारा छापा गया था। 6 दशकों से कम समय में ही अमेरिकी डॉलर एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उभर कर सामने आ गया, हालाँकि डॉलर प्रमुख मुद्रा जोड़े क्या हैं के लिये इतने कम समय में ख्याति हासिल करना शायद आसान नहीं था।
      • यह वह समय था जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पछाड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रही थी, परंतु ब्रिटेन अभी भी विश्व का वाणिज्य केंद्र बना हुआ था क्योंकि उस समय तक अधिकतर देश ब्रिटिश पाउंड के माध्यम से ही लेन -देन कर रहे थे।
        • साथ ही कई विकासशील देश अपनी मुद्रा विनिमय में स्थिरता लाने के प्रमुख मुद्रा जोड़े क्या हैं लिये उसके मूल्य का निर्धारण सोने (Gold) के आधार पर कर रहे थे
        • इस व्यवस्था को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।

        निष्कर्ष

        अरबों डॉलर के विदेशी ऋण और घाटे की वित्तीय व्यवस्था के बावजूद वैश्विक बाज़ार को अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर विश्वास है। जिसके कारण अमेरिकी डॉलर आज भी विश्व की सबसे मज़बूत मुद्रा बनी हुई है और आशा है कि आने वाले वर्षों में भी यह महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा की भूमिका अदा करेगी, हालाँकि गत कुछ वर्षों में चीन और रूस जैसे देशों ने डॉलर के समक्ष कई चुनौतियाँ पैदा की हैं। आवश्यक है कि चीन और रूस जैसे देशों की बात भी सुनी जानी चाहिये और सभी हितधारकों को एक मंच पर एकत्रित होकर यथासंभव संतुलित मार्ग की खोज करने का प्रयास करना चाहिये।

        प्रश्न: वैश्विक वित्तीय प्रणाली में डॉलर की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

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        विदेश में बसे अपनों को भेजना चाहते हैं विदेशी मुद्रा उपहार? ये क्रॉस-बॉर्डर निओ-बैंकिंग ऐप्स करेंगे मदद

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        विदेश में बसे अपने प्रियजनों के लिए विदेशी मुद्रा उपहार भेजना अब क्रॉस-बॉर्डर निओ-बैंकिंग के माध्यम से आसान हो गया है. एक नज़र उन स्टार्टअप्स पर जो ये सुविधा मुहैया करा रहे हैं.

        जब आपके प्रियजन विदेश में रहते है और जिनके लिए आपके मन में प्रेमभावना हैं, तब उन लोगों के साथ भावना से जुड़े रहना मुश्किल लगता है, लेकिन एक ऐसी कृति है जिससे आप यह दूरी को कम महसूस कर सकते है. दुनिया भर में क्रॉस-बॉर्डर निओ-बैंक फॉरेक्स मार्कअप पर काबू पाने, लेन-देन के समय को कम करने और सबसे अधिक किफ़ायती तरीके से उपभोक्ताओं को सुविधा उपलब्ध हो इस दिशा में काम कर रहा हैं. आज के डिजिटल भुगतान के युग में, टेक्नोलॉजी हर क्षेत्र में मददगार साबित हो रही है और क्रॉस-बॉर्डर निओ-बैंक ने इस सटीक टेक्नोलॉजी का उपयोग करके दुनिया भर में डिजिटल खर्च, साझाकरण और बचत को संभव बनाया है.

        moneyHop

         moneyHop  भारत का पहला क्रॉस-बॉर्डर निओ-बैंक है, जो एक साधारण चार-चरणीय प्रक्रिया के माध्यम से दुनिया भर में 0% मार्कअप पर अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण को सक्षम बनाता है - गंतव्य, मुद्रा और राशि का चयन करें> एक डिजिटल केवाईसी पूरा करें> प्राप्तकर्ता का विवरण जोड़ें> ऑनलाइन भुगतान करें.

        यह न केवल लाइव दरों पर लेनदेन को सक्षम बनाता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई छिपा हुआ शुल्क नहीं है. फॉरेक्स कार्ड और डेबिट कार्ड के संयोजन की पेशकश करते हुए, moneyHop अपने उपयोगकर्ताओं को 6% ब्याज पर शून्य-बैलेंस, अंतर्राष्ट्रीय, बचत खाते रखने में सक्षम बनाता है. इसके अलावा, टेक्नोलॉजी का लाभ उठाकर यह सुनिश्चित कर सकता है कि लेन-देन जल्दी, समय पर निर्बाध रूप से हो. यह एक ऐसा मंच है जो लोगों को आर्थिक रूप से करीब लाने के लिए समर्पित है, जो क्रॉस-बॉर्डर क्षेत्र में बैंकिंग के लिए परेशानी मुक्त वातावरण बनाता है.

        Jupiter

         Jupiter  एक अन्य प्रमुख निओ-बैंक है जो क्रॉस-बॉर्डर प्रेषण सेवाएं भी प्रदान करता है और सभी अंतरराष्ट्रीय खरीद के लिए लगभग 3.5% शुल्क लेता है और किसी भी अन्य खर्च के लिए स्लैब-आधारित शुल्क लेता है. वे विभिन्न सेवाओं के माध्यम से बचत को प्रोत्साहित करते हैं, जिसमें उनके डेबिट कार्ड और यूपीआई, एक म्यूचुअल फंड निवेश विकल्प, और मुफ्त स्वास्थ्य कवर के साथ एक वेतन खाता के माध्यम से खर्च से जुड़ी उनकी पुरस्कार प्रणाली शामिल है. यह सभी डेबिट कार्डों के लिए बस एकबार दिए जाना वाला शुल्क भी लेता है.

         Fi Money  एक आगामी क्रॉस-बॉर्डर निओ-बैंक है जो न्यूनतम से लेकर बिना किसी छिपे हुए शुल्क के भुगतान की अनुमति देता है. उपभोक्ता न्यूनतम शेष राशि के किसी भी शुल्क और 3% बचत के एक ब्याज खाता के साथ अपने प्लेटफॉर्म पर शुरुआत कर सकते हैं. वे एक ऐसा मंच हैं जिसका उद्देश्य धन प्रबंधन उपकरण के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के निवेश और जमा विकल्पों की पेशकश करके धन प्रबंधन को डिजिटाइज़ करना है. वे 3% की बचत के साथ एक डिजिटल ब्याज खाता भी प्रदान करते हैं.

        Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?

        Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?

        डॉलर इंडेक्स में भले ही 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है. (File Photo)

        What is US Dollar Index and Why it is Important : रुपये में मजबूती की खबर हो या गिरावट की, ब्रिटिश पौंड अचानक कमजोर पड़ने लगे या रूस और चीन की करेंसी में उथल-पुथल मची हो, करेंसी मार्केट से जुड़ी तमाम खबरों में डॉलर इंडेक्स का जिक्र जरूर होता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार की हलचल से जुड़ी खबरों में तो रेफरेंस के लिए डॉलर इंडेक्स का नाम हमेशा ही होता है. ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाज़मी है कि करेंसी मार्केट से जुड़ी खबरों में इस इंडेक्स को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि डॉलर इंडेक्स आखिर है क्या?

        डॉलर इंडेक्स क्या है?

        डॉलर इंडेक्स दुनिया की 6 प्रमुख करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती या कमजोरी का संकेत देने वाला इंडेक्स है. इस इंडेक्स में उन देशों की मुद्राओं को शामिल किया गया है, जो अमेरिका के सबसे प्रमुख ट्रे़डिंग पार्टनर हैं. इस इंडेक्स शामिल 6 मुद्राएं हैं – यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक. इन सभी करेंसी को उनकी अहमियत के हिसाब से अलग-अलग वेटेज दिया गया है. डॉलर इंडेक्स जितना ऊपर जाता है, डॉलर को उतना मजबूत माना जाता है, जबकि इसमें गिरावट का मतलब ये है कि अमेरिकी करेंसी दूसरों के मुकाबले कमजोर पड़ रही है.

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        डॉलर इंडेक्स में किस करेंसी का कितना वेटेज?

        डॉलर इंडेक्स पर हर करेंसी के एक्सचेंज रेट का असर अलग-अलग अनुपात में पड़ता है. इसमें सबसे ज्यादा वेटेज यूरो का है और सबसे कम स्विस फ्रैंक का.

        • यूरो : 57.6%
        • जापानी येन : 13.6%
        • कैनेडियन डॉलर : 9.1%
        • ब्रिटिश पाउंड : 11.9%
        • स्वीडिश क्रोना : 4.2%
        • स्विस फ्रैंक : 3.6%

        हर करेंसी के अलग-अलग वेटेज का मतलब ये है कि इंडेक्स में जिस करेंसी का वज़न जितना अधिक होगा, उसमें बदलाव का इंडेक्स पर उतना ही ज्यादा असर पड़ेगा. जाहिर है कि यूरो में उतार-चढ़ाव आने पर डॉलर इंडेक्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है.

        डॉलर इंडेक्स का इतिहास

        डॉलर इंडेक्स की शुरुआत अमेरिका के प्रमुख मुद्रा जोड़े क्या हैं सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने 1973 में की थी और तब इसका बेस 100 था. तब से अब तक इस इंडेक्स में सिर्फ एक बार बदलाव हुआ है, जब जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियन फ्रैंक को हटाकर इन सबकी की जगह यूरो को शामिल किया गया था. अपने इतने वर्षों के इतिहास में डॉलर इंडेक्स आमतौर पर ज्यादातर समय 90 से 110 के बीच रहा है, लेकिन 1984 में यह बढ़कर 165 तक चला गया था, जो डॉलर इंडेक्स का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. वहीं इसका सबसे निचला स्तर 70 है, जो 2007 में देखने को मिला था.

        डॉलर इंडेक्स में भले ही सिर्फ 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इस पर दुनिया के सभी देशों में नज़र रखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है. न सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में होता है, बल्कि तमाम देशों की सरकारों के विदेशी मुद्रा भंडार में भी डॉलर सबसे प्रमुख करेंसी है. यूएस फेड के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2019 के दौरान अमेरिकी महाद्वीप का 96 फीसदी ट्रेड डॉलर में हुआ, जबकि एशिया-पैसिफिक रीजन में यह शेयर 74 फीसदी और बाकी दुनिया में 79 फीसदी रहा. सिर्फ यूरोप ही ऐसा ज़ोन है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार यूरो में होता है. यूएस फेड की वेबसाइट के मुताबिक 2021 में दुनिया के तमाम देशों में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिकी डॉलर का था. जाहिर है, इतनी महत्वपूर्ण करेंसी में होने वाला हर उतार-चढ़ाव दुनिया भर के सभी देशों पर असर डालता है और इसीलिए इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है.

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