-चालू खाते का घाटा बढ़ जाएगा, जो पहले ही 40 अरब डॉलर पहुंच गया है. पिछले साल समान अवधि में यह 55 अरब डॉलर सरप्‍लस था.

Vikash Tiwary

Rupee VS Dollar : डॉलर के मुकाबले रुपये में क्‍यों आ रही रिकॉर्ड गिरावट? आगे क्‍या है भारतीय मुद्रा का भविष्‍य?

डॉलर के मुकाबले रुपये में आज 0.47 फीसदी गिरावट आई.

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 10, 2022, 12:22 IST

हाइलाइट्स

डॉलर के मुकाबले रुपया 82.70 के नए रिकॉर्ड निचले स्‍तर पर चला गया.

नई दिल्‍ली. डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा लगातार नीचे गिर रही है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता जा रहा है. प्रतिदिन फॉरेक्‍स मार्केट खुलने के साथ ही रुपये में गिरावट का नया रिकॉर्ड बन जाता है. एक्‍सपर्ट की मानें तो आगे रुपये का रास्‍ता और भी ढलान की ओर जाता है.

सोमवार को मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 82.70 के नए रिकॉर्ड निचले स्‍तर पर चला गया. इसकी सबसे बड़ी वजह इमर्जिंग मार्केट में आ रही गिरावट और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सख्‍त नियमों को माना जा रहा है. आज सुबह 9 बजे के आसपास भारतीय मुद्रा अपने पिछले बंद भाव से करीब 0.47 फीसदी टूटकर ट्रेडिंग कर रही थी, जबकि इसकी शुरुआत ही रिकॉर्ड 82.72 के निचले स्‍तर से हुई थी.

अमेरिका में बढ़ती बॉन्‍ड यील्‍ड भारतीय मुद्रा के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है, जिसमें पिछले 8 में से 7 सत्रों में उछाल दर्ज किया गया है. फिलहाल 10 साल की बॉन्‍ड यील्‍ड 7.483 फीसदी पर है, जो पिछले बंद से 3 आधार अंक ऊपर है. गौरतलब है कि बॉन्‍ड यील्‍ड और फॉरेक्‍स बाजार एक-दूसरे के अपोजिट साइड में चलते हैं.

डॉलर के मुकाबले रुपये में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट, रुपया गिरने का मतलब क्या है, आम आदमी को इससे कितना नफा-नुकसान

भारतीय मुद्रा

भारतीय मुद्रा

अपूर्वा राय

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2022,
  • (Updated 30 जून 2022, 3:06 PM IST)

एक अमेरिकी डॉलर 79.04 रुपये का हो गया है,

भारतीय रुपये (Indian Rupee) में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है. अमेरिकी डॉलर (Dollar) की तुलना में रुपया अपने रिकॉड निचले स्तर पर है. मतलब एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 79.04 रुपये पहुंच गया है. यह स्तर अब तक का सर्वाधिक निचला स्तर है. देश की आजादी के बाद से ही रुपये की वैल्यू लगातार कमजोर ही हो रही है. भले ही रुपये में आने वाली ये गिरावट आपको समझ में न आती हो या आप इसे गंभीरता से ना लेते हों, लेकिन हमारे और आपके जीवन पर इनका बड़ा असर पड़ता है.

आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है? रुपये की गिरती कीमत हम पर किस तरह से असर डालती है. आइए जानते हैं.

क्या होता है एक्सचेंज रेट

दो करेंसी के बीच में जो कनवर्जन रेट होता है उसे एक्सचेंज रेट या विनिमय दर कहते हैं. यानी एक देश की करेंसी की दूसरे देश की करेंसी की तुलना में वैल्यू ही विनिमय दर कहलाती है. एक्सचेंज रेट तीन तरह के होते हैं. फिक्स एक्सचेंज रेट में सरकार तय करती है कि करेंसी का कनवर्जन रेट क्या होगा. मार्केट में सप्लाई और डिमांड के आधार पर करेंसी की विनिमय दर बदलती रहती है. अधिकांश एक्सचेंज रेट फ्री-फ्लोटिंग होती हैं. ज्यादातर देशों में पहले फिक्स एक्सचेंज रेट था.

Rupee Update : डॉलर के मुकाबले पहली बार रुपया 80 के पार, क्‍यों आ रही लगातार गिरावट और क्‍या होगा असर?

डॉलर इस समय 20 साल के सबसे मजबूत स्थिति में है.

  • News18Hindi
  • Last Updated : July 19, 2022, 10:19 IST

हाइलाइट्स

मंगलवार सुबह डॉलर के मुकाबले रुपया 79.98 पर खुला.
साल 2022 में ही रुपया डॉलर के मुकाबले 7 फीसदी टूट चुका है.
अप्रैल से अब तक विदेशी निवेशकों ने 14 अरब डॉलर की पूंजी निकाल ली है.

नई दिल्‍ली. डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा की कमजोरी लगातार बढ़ती जा रही है. मंगलवार सुबह रुपये ने पहली बार रिकॉर्ड 80 का न्‍यूनतम स्‍तर छुआ. रुपये में आ रही लगातार गिरावट का भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर बुरा असर पड़ रहा है.

फॉरेक्‍स मार्केट के आंकड़ों के अनुसार, मंगलवार सुबह डॉलर के मुकाबले रुपया 79.98 पर खुला, जो पिछले बंद से 1 पैसे नीचे था. मुद्रा विनिमय बाजार खुलते ही रुपये में गिरावट दिखने लगी और कुछ ही मिनट में यह ऐतिहासिक गिरावट के साथ 80 के पार जाकर 80.01 पर ट्रेडिंग करने लगा. ग्‍लोबल मार्केट में डॉलर में आ रही मजबूती और विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार से धन निकासी की वजह से रुपये पर दबाव बढ़ता जा रहा है. साल 2022 में ही रुपया डॉलर के मुकाबले 7 फीसदी टूट चुका है.

डॉलर के मुकाबले एक महीने की ऊंचाई पर पहुंचा रुपया, जानिए क्यों आई मजबूती

डॉलर के मुकाबले एक महीने की ऊंचाई पर पहुंचा रुपया, जानिए क्यों आई मजबूती

डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती का रुख देखने को मिल रहा है. मंगलवार के शुरुआती कारोबार में रुपया डॉलर के मुकाबले एक महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. रुपया फिलहाल मजबूती के साथ 79 के स्तर से नीचे कारोबार कर रहा है. बदलती आर्थिक स्थितियों और शेयर बाजार के मजबूत प्रदर्शन की वजह से एक बार फिर विदेशी निवेश का रुख भारत की ओर हुआ है, जिससे रुपये को मजबूती मिली है. वहीं डॉलर में आई कमजोरी से भी रुपये को फायदा मिला है.

कहां पहुंचा रुपया

डॉलर के मुकाबले रुपया का पिछला बंद स्तर 79.03 था. आज रुपया इस स्तर के मुकाबले मजबूती के साथ 78.95 के स्तर पर खुला दोपहर के कारोबार तक रुपया 78.49 के स्तर तक मजबूत हुआ. दोपहर 12 बजे के करीब रुपया मजबूती के साथ 78.6 के करीब कारोबार कर रहा था. पिछले महीने ही डॉलर के मुकाबले रुपया 80.06 के अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंचा था. हालांकि जुलाई के अंत से रुपये में मजबूती का रुख देखने को मिल रहा है. दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों को भरोसा बढ़ रहा है. वहीं शेयर बाजार में भी पिछले कुछ समय से मजबूती देखने को मिल रही है और विदेशी निवेशकों की खरीदारी बढ़ रही है. कैपिटल का फ्लो एक बार फिर घरेलू मार्केट की तरफ होने से रुपये को सहारा मिला है. अपने निचले स्तरों पर इस साल अबतक डॉलर के मुकाबले रुपया 7 प्रतिशत से ज्यादा टूटा था. हालांकि अब नुकसान घटकर 6 प्रतिशत से नीचे आ गया है.

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क्यों टूट रहा है रुपया

गिरावट का एक और कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है। इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है। सूचकांक के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती। ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं।इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है। यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है।

रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं। चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है। आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है।

कहां तक टूट सकता है रुपया?

बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार, भारतीय रुपया साल के अंत तक 81 प्रति डॉलर तक टूट सकता है। इस साल अब तक भारतीय रुपया 9% से अधिक लुढ़क चुकी है। डॉलर में मजबूती और कच्चे तेल कीमतों में तेजी ने रुपया को कमजोर करने का काम किया है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल आयात करता है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ा है।

भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।

रुपये पर सीधा असर

व्यापार घाटा बढ़ने का चालू खाता के घाटा (सीएडी) पर सीधा असर पड़ता है और यह भारतीय रुपये के जुझारुपन, निवेशकों की धारणाओं और व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। चालू वित्त वर्ष में सीएडी के जीडीपी के तीन फीसदी या 105 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। आयात-निर्यात संतुलन बिगड़ने के पीछे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से तेल और जिसों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ना, चीन में कोविड पाबंदियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना और आयात की मांग बढ़ने जैसे कारण हैं। इसकी एक अन्य वजह डीजल और विमान ईधन के निर्यात पर एक डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? जुलाई से लगाया गया अप्रत्याशित लाभ कर भी है।

देश के निर्यात में गिरावट ऐसे समय हुई है जब तेल आयात का बिल बढ़ता जा रहा है। भारत ने अप्रैल से अगस्त के बीच तेल आयात पर करीब डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है? 99 अरब डॉलर खर्च किए हैं जो पूरे 2020-21 की समान अवधि में किए गए 62 अरब डॉलर के व्यय से बहुत ज्यादा है। सरकार ने हाल के महीनों में आयात को हतोत्साहित करने के लिए सोने जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने, कई वस्तुओं के आयात पर पाबंदी लगाने तथा घरेलू उपयोग में एथनॉल मिश्रित ईंधन की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास करने जैसे कई कदम उठाए हैं। इन कदमों का कुछ लाभ हुआ है और आयात बिल में कुछ नरमी जरूर आई है लेकिन व्यापक रूझान में बड़े बदलाव की संभावना कम ही नजर आती है।

आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर

भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपये हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) थे। उनके नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपये की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये हुआ था।

देश के आजाद होने के बाद से पहली बार 1991 में मंदी आई। तब केंद्र में नरसिंम्हा राव (Narasimha Rao) की सरकार थी। उनकी अगुआई में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई, जिसने रुपये की कमर तोड़ दी। रिकार्ड गिरावट के साथ रुपया प्रति डॉलर 22.74 पर जा पहुंचा। दो साल बाद रुपया फिर कमजोर हुआ। तब एक डॉलर की कीमत 30.49 रुपया हुआ करती थी। उसके बाद से रुपये के कमजोर होने का सिलसिला चलता रहा है। वर्ष 1994 से लेकर 1997 तक रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। उस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 31.37 से 36.31 रुपये के बीच रहा।

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