सेबी के नए मार्जिन नियम आज से लागू, यहां जानिए अपने हर सवाल का जवाब
कैश मार्केट में मार्जिन से जुड़े ने नियम 1 सितंबर से लागू हो गए हैं. सेबी ने इसे कुछ समय टालने की अपील ठुकरा दी है
सेबी मार्जिन के दो तरह के नियमों को लागू करना चाहता है. पहला नियम कैश मार्केट में अपफ्रंट मार्जिन से संबंधित है.
मैं मार्जिन को पूरी तरह से नहीं समझता, क्या मुझे इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
मार्जिन का मतलब उस रकम से है, जो आपके ट्रेडिंग अकाउंट में होती है. सामान्य रूप से निवेशक को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में जमा रकम से शेयर खरीदने की इजाजत होनी चाहिए. लेकिन, व्यवहार में मामला थोड़ा अलग है. कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने क्लाइंट को शेयर खरीदने के लिए रकम उधार देती हैं. इसे लिवरेज या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं. इंट्राडे ट्रेडिंग में यह ज्यादा देखने को अपस्टॉक्स ट्रेडिंग का कितना चार्ज लेता है मिलता है.
फिर, 1 सितंबर से क्या बदलने जा रहा है?
पहले हम यह समझते हैं कि शेयरों की डिलीवरी किस तरह होती है. अभी बाजार में डिलीवरी के लिए टी+2 (ट्रेडिंग प्लस दो दिन) मॉडल का पालन होता है. इसका मतलब है कि अगर आप सोमवार को शेयर खरीदते या बेचते हैं तो यह बुधवार को डेबिट या क्रेडिट होगा. इसी तरह शेयर का पैसा भी बुधवार को आपके अकाउंट में आएगा या उससे जाएगा. इस मॉडल में ब्रोकर्स क्लाइंट के अकाउंट में पैसा नहीं होने पर भी शेयर खरीदने की इजाजत देते हैं. यह इस शर्त पर किया जाता है कि आप पैसा टी+1 या टी+2 दिन में चुका देंगे.
अब सेबी ने जो नया नियम बनाया है, उसमें ब्रोकर को सौदे की कुल वैल्यू का 20 फीसदी क्लाइंट से अपफ्रंट लेना होगा. इसका मतलब यह है कि सौदे के वक्त क्लाइंट (रिटेल निवेशक) को 20 फीसदी रकम चुकाना होगा. उदाहरण के लिए अगर रिटेल निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक लाख रुपये मूल्य के शेयर खरीदता है तो ऑर्डर प्लेस करने से पहले उसके ट्रेडिंग अकाउंट में कम से कम 20,000 रुपये होने चाहिए. बाकी पैसा वह टी+1 या टी+2 दिन में या ब्रोकर के निर्देश के मुताबिक चुका सकता है. सेबी के नए नियम के मुताबिक शेयर बेचते वक्त भी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन होना चाहिए.
शेयर बेचने के लिए मेरे ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन क्यों होना चाहिए?
सेबी ने सोच-समझकर यह नियम लागू किया है. इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आप सोमवार को 100 शेयर बेचते हैं. ये शेयर आपको अकाउंट से बुधवार को डेबिट होंगे. लेकिन, अगर आप मंगलवार (डेबिट होने से पहले) को इन शेयरों को किसी दूसरे को ट्रांसफर कर देते हैं तो सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम पैदा हो जाएगा.
ब्रोकिंग कंपनियों के पास ऐसा होने से रोकने के लिए हथियार होते हैं. 95 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है. सेबी ने यह नियम इसलिए लागू किया है कि 5 फीसदी मामलों में भी ऐसा न हो.
यह नियम कुछ ज्यादा सख्त लगता है, क्या इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है?
इसका दूसरा तरीका है. सेबी ने बगैर मार्जिन शेयर बेचने की इजाजत दी है. लेकिन, इसमें शर्त यह है कि ब्रोकर के पास ऐसा सिस्टम होना चाहिए, जिसमें शेयर बेचने के दिन वह शेयरों को क्लाइंट के अकाउंट से अपने अकाउंट में ट्रांस्फर कर लें. लेकिन, इसमें कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें हैं.
इस नियम का बाजार पर क्या असर पड़ेगा?
विश्लेषकों और इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि नए नियमों से ट्रेडिंग वॉल्यूम घटेगा. लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि पिछले 25 साल में जब भी नए नियम लागू किए गए, बाजार ने उसके हिसाब से खुद को ढाल लिया. नए नियम बाजार में जोखिम घटाने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए लागू किए जाते हैं.
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ब्रोकिंग का डेली बिजनेस दोगुना: हर ट्रेड सिर्फ 20 रुपए में और OTT की तरह सब्सक्रिप्शन जैसे ऑफर से ट्रेडिंग हुई सिंपल
शेयर बाजार में निवेश और ट्रेडिंग का जरिया रही ब्रोकरेज इंडस्ट्री नए मोड में आ गई है। निवेशकों और ट्रेडर्स की बढ़ती संख्या और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बढ़ाने के लिए उसने नया मॉडल अपना लिया है। ये मॉडल ना सिर्फ निवेशकों को सहूलियत अपस्टॉक्स ट्रेडिंग का कितना चार्ज लेता है देता है बल्कि उनके लिए निवेश का हिसाब-किताब रखना आसान भी बनाता है।
दरअसल, अब ब्रोकिंग हाउसेज किसी इन्वेस्टमेंट या ट्रेड पर तय पर्सेंटेज में ब्रोकिंग फीस लेने के बजाय फ्लैट ब्रोकरेज और सब्सिक्रिप्शन मॉडल पर जा रहे हैं। फ्लैट ब्रोकरेज का मतलब ये है कि आप जब किसी ब्रोकरेज हाउस या कंपनी निवेश या ट्रेडिंग के लिए पहले से तय ब्रोकिंग फीस लेती है। भले ही आप कितना बड़ा या छोटा, निवेश या ट्रेड करें। मसलन, कोटक आपके हर ऑर्डर पर 20 रुपए चार्ज कर रही है।
अब बात करते अपस्टॉक्स ट्रेडिंग का कितना चार्ज लेता है हैं सब्सिक्रिप्शन बेस्ड मॉडल की। इसमें हर महीने या साल के लिए आप सब्सक्रिप्शन लेकर तय नियमों के मुताबिक निवेश या ट्रेड कर सकते हैं। ये बिलकुल वैसा ही है जैसा आज कल OTT प्लेटफॉर्म एप्लीकेशंस का सब्सक्रिप्शन लेते हैं।
बढ़ रहा है मार्केट शेयर
डिस्काउंट, फ्लैट ब्रोकरेज और सब्सक्रिप्शन बेस्ड मॉडल जैसे नए तरीकों से ब्रोकरेजेज को पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी। पिछले एक साल में मार्केट शेयर में तेज उछाल इस बात को साफ भी करती है। पिछले एक साल में टॉप 2 ब्रोकरेज हाउसों का मार्केट शेयर 17% से बढ़कर 30% हो गया है। इसमें जिरोधा और अपस्टॉक्स हैं। दोनों की बात करें तो ये फ्लैट ब्रोकरेज प्लान देते हैं।
2 गुना बढ़ा टर्नओवर
इंडस्ट्री के ओवरऑल मार्केट की बात करें तो रोजाना का टर्नओवर 2 गुना बढ़ा है। यह दिसंबर 2020 तक 14.4 लाख करोड़ रुपए से बढ़ कर 31.1 लाख करोड़ रुपए हो गया था। इसी तरह से ग्राहकों को जोड़ने की संख्या में सालाना आधार पर 67% की बढ़त हुई है। यह 1.63 करोड़ हो गया है। इसमें नए ग्राहकों में ज्यादातर ग्राहक दूसरे लेवल और उसके नीचे के शहरों के हैं।
कम ब्याज, म्यूचुअल फंड के खराब प्रदर्शन से इक्विटी में आ रहे हैं नए निवेशक
इसके बढ़ने के पीछे जो कारण हैं उसमें नए निवेशकों, म्यूचुअल फंड की स्कीम्स का खराब प्रदर्शन और फिक्स्ड इनकम असेट्स पर कम ब्याज है। डिस्काउंट देने वाले ब्रोकरेज लगातार अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। जबकि परंपरागत पुराने ब्रोकरेज हाउस अपनी हिस्सेदारी गंवा रहे हैं। हालांकि वे भी अब फिक्स्ड ब्रोकरेज प्लान शुरू कर चुके हैं। इसमें कोटक सिक्योरिटीज, एक्सिस सिक्योरिटीज ने कम ब्रोकरेज प्लान को पेश किया है। जबकि गैर बैंकिंग ब्रोकरेज हाउस जैसे एंजल ब्रोकिंग और शेयर खान ने भी ऐसा ही ऑफर किया है।
फीस आधारित मॉडल की ओर इंडस्ट्री
भारतीय ब्रोकिंग इंडस्ट्री अब फीस आधारित मॉडल की ओर जा रही है। एडवाइजरी सेवाओं के अलावा अब फंड आधारित गतिविधियां जैसे मार्जिन फंडिंग और शेयरों के एवज में लोन दिए जाने का काम चल रहा है। ब्रोकिंग इंडस्ट्री फिक्स्ड चार्ज की बजाय सेवाएं देने के एवज में पैसे लेने की ओर जा रही है। चूंकि फाइनेंशियल सेविंग बढ़ रही है और ब्याज दरें कम हैं, इसलिए इक्विटी एक असेट क्लास के रूप में लगातार निवेशकों की पसंदीदा बना हुआ है। ऐसे में डिस्काउंट देने वाले ब्रोकर लगातार अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते रहेंगे।
4 लिस्टेड ब्रोकरेज हाउस हैं
शेयर बाजार में लिस्टेड ब्रोकिंग हाउसों में मोतीलाल ओसवाल, आईआईएफएल सिक्योरिटीज, जियोजीत और 5 पैसा है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने इसमें से जियोजीत को छोड़कर सभी के शेयरों को खरीदने की सलाह दी है। इसमें मोतीलाल ओसवाल का शुद्ध फायदा 1,099 करोड़ रुपए रहा है तो आईआईएफल का 195 करोड़ रुपए रहा है। जियोजीत का फायदा 118 करोड़ और 5 पैसा का फायदा 15 करोड़ रुपए रहा है।
1.63 करोड़ हैं एक्टिव ग्राहक
जनवरी 2021 तक एक्टिव ग्राहकों की संख्या 1.63 करोड़ रही है। मार्च 2020 में यह 1.01 करोड़ थी। सितंबर 2020 में यह 1.34 करोड़ थी। सबसे ज्यादा ग्राहक सितंबर की ही तिमाही में आए हैं। उस तिमाही में कुल 21.9 लाख ग्राहक जुड़े थे। दिसंबर 2020 में कुल 19.3 लाख ग्राहक ब्रोकिंग हाउस से जुड़े थे। इसका सबसे ज्यादा लाभ डिस्काउंट वाले ब्रोकिंग हाउस को मिला है। इसमें जिरोधा, अपस्टॉक्स, 5 पैसा और एंजल ब्रोकिंग रहे हैं।
जिरोधा की हिस्सेदारी बढ़ कर 19% हुई
जिरोधा की बाजार हिस्सेदारी 1 साल में जनवरी 2021 तक 13 से बढ़ कर 19% हो गई है। आरकेएसवी (अपस्टॉक्स) की हिस्सेदारी 5 से बढ़कर 11.3% हो गई है। इसका कारण यह है कि इनके ऐप काफी यूजर फ्रेंडली हैं और ये डिजिटलाइजेशन पर फोकस करते हैं। इसलिए नए ग्राहक इनके पास आ रहे हैं।
एक्टिव क्लाइंट में जिरोधा एक नंबर पर
एक्टिव क्लाइंट के आधार पर देखें तो जिरोधा के पास 31.4 लाख ग्राहक हैं। आरकेएसवी के पास 18.5 लाख ग्राहक हैं। एंजल ब्रोकिंग के पास 13.2 लाख ग्राहक, एचडीएफसी सिक्योरिटीज के पास 9.2 लाख, 5 पैसा कैपिटल के पास 8.2 लाख, कोटक सिक्योरिटीज के पास 7 लाख, शेयर खान के पास 6.6 लाख, मोतीलाल ओसवाल के पास 5 लाख ग्राहक हैं। अन्य के पास 64.6 लाख अपस्टॉक्स ट्रेडिंग का कितना चार्ज लेता है ग्राहक हैं।
एंजल ब्रोकिंग ने जब से डिस्काउंट शुरू किया है, पिछली 3-4 तिमाहियों में उसके ग्राहकों की संख्या बढ़ी है। दिसंबर 2019 में इसके ग्राहकों की संख्या 4.9 लाख थी जो जनवरी 2021 में 8.1 लाख हो गई।
डेली टर्नओवर भी बढ़ा
इंडस्ट्री के एवरेज डेली टर्नओवर की बात करें तो यह मार्च 2020 में केवल 11.8 लाख करोड़ रुपए था। फरवरी 2021 में यह बढ़ कर 45.9 लाख करोड़ रुपए हो गया है। भारत के शेयर बाजार के पेंनेट्रेशन (जागरुकता) की बात करें तो यह देश की कुल आबादी का केवल 1-2% ही है। जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा 20% है। इसका मतलब भारतीय शेयर बाजार में ग्रोथ की अपार संभावनाएं हैं।
टेक्नोलॉजी का बेहतर उपयोग
नए ब्रोकरों के आने और टेक्नोलॉजी के उपयोग से ग्राहक भी आ रहे हैं। मोबाइल फोन के ट्रेडिंग ऐप ने इसे और आसान बना दिया है। BSE और NSE के आंकड़े बताते हैं कि दूसरे लेवल और उसके आगे के शहरों में शेयर बाजार का कारोबार जोर पकड़ रहा है। वित्त वर्ष 2018 में इन शहरों का टर्नओवर BSE में 30% हुआ करता था। 2020 में यह 40% हो गया है। NSE में यह इसी समय में 14 से बढ़ कर 17% हो गया है। नए ग्राहकों में 25 से 35 साल की उम्र जिनकी है, वो ज्यादा आ रहे हैं।
ज्यादातर ग्राहक छोटे शहरों से आ रहे हैं
आंकड़े बताते हैं कि अपस्टॉक्स के ग्राहकों में 80% ग्राहक, 5 पैसा के ग्राहकों में 88% और एंजल ब्रोकिंग के ग्राहकों में 50% ग्राहक छोटे शहरों से आते हैं। यही कारण है कि परंपरागत ब्रोकरेज हाउस इसी डिस्काउंट में आ रहे हैं। कोटक ने नवंबर में इंट्रा डे के कारोबार के लिए जीरो पैसा और अन्य एफएंडओ ट्रेड्स के लिए 20 रुपए प्रति ऑर्डर की प्लान लांच किया था।
शेयरखान ने तो ग्राहकों को ट्रेड में अगर कोई नुकसान होता है तो इसे फ्री कर दिया है। कोई चार्ज नहीं लेगा। बाकी के लिए इसने 20 रुपए प्रति ऑर्डर का ऑफर किया है। एंजल भी 20 रुपए प्रति ऑर्डर का ऑफर किया है।
सेबी के नए मार्जिन नियम आज से लागू, यहां जानिए अपने हर सवाल का जवाब
कैश मार्केट में मार्जिन से जुड़े ने नियम 1 सितंबर से लागू हो गए हैं. सेबी ने इसे कुछ समय टालने की अपील ठुकरा दी है
सेबी मार्जिन के दो तरह के नियमों को लागू करना चाहता है. पहला नियम कैश मार्केट में अपफ्रंट मार्जिन से संबंधित है.
मैं मार्जिन को पूरी तरह से नहीं समझता, क्या मुझे इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
मार्जिन का मतलब उस रकम से है, जो आपके ट्रेडिंग अकाउंट में होती है. सामान्य रूप से निवेशक को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में जमा रकम से शेयर खरीदने की इजाजत होनी चाहिए. लेकिन, व्यवहार में मामला थोड़ा अलग है. कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने क्लाइंट को शेयर खरीदने के लिए रकम उधार देती हैं. इसे लिवरेज या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं. इंट्राडे ट्रेडिंग में यह ज्यादा देखने को मिलता है.
फिर, 1 सितंबर से क्या बदलने जा रहा है?
पहले हम यह समझते हैं कि शेयरों की डिलीवरी किस तरह होती है. अभी बाजार में डिलीवरी के लिए टी+2 (ट्रेडिंग प्लस दो दिन) मॉडल का पालन होता है. इसका मतलब है कि अगर आप सोमवार को शेयर खरीदते या बेचते हैं तो यह बुधवार को डेबिट या क्रेडिट होगा. इसी तरह शेयर का पैसा भी बुधवार को आपके अकाउंट में आएगा या उससे जाएगा. इस मॉडल में ब्रोकर्स क्लाइंट के अकाउंट में पैसा नहीं होने पर भी शेयर खरीदने की इजाजत देते हैं. यह इस शर्त पर किया जाता है कि आप पैसा टी+1 या अपस्टॉक्स ट्रेडिंग का कितना चार्ज लेता है टी+2 दिन में चुका देंगे.
अब सेबी ने जो नया नियम बनाया है, उसमें ब्रोकर को सौदे की कुल वैल्यू का 20 फीसदी क्लाइंट से अपफ्रंट लेना होगा. इसका मतलब यह है कि सौदे के वक्त क्लाइंट (रिटेल निवेशक) को 20 फीसदी रकम चुकाना होगा. उदाहरण के लिए अगर रिटेल निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक लाख रुपये मूल्य के शेयर खरीदता है तो ऑर्डर प्लेस करने से पहले उसके ट्रेडिंग अकाउंट में कम से कम 20,000 रुपये होने चाहिए. बाकी पैसा वह टी+1 या टी+2 दिन में या ब्रोकर के निर्देश के मुताबिक चुका सकता है. सेबी के नए नियम के मुताबिक शेयर बेचते वक्त भी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन होना चाहिए.
शेयर बेचने के लिए मेरे ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन क्यों होना चाहिए?
सेबी ने सोच-समझकर यह नियम लागू किया है. इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आप सोमवार को 100 शेयर बेचते हैं. ये शेयर आपको अकाउंट से बुधवार को डेबिट होंगे. लेकिन, अगर आप मंगलवार (डेबिट होने से पहले) को इन शेयरों को किसी दूसरे को ट्रांसफर कर देते हैं तो सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम पैदा हो जाएगा.
ब्रोकिंग कंपनियों के पास ऐसा होने से रोकने के लिए हथियार होते हैं. 95 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है. सेबी ने यह नियम इसलिए लागू किया है कि 5 फीसदी मामलों में भी ऐसा न हो.
यह नियम कुछ ज्यादा सख्त लगता है, क्या इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है?
इसका दूसरा तरीका है. सेबी ने बगैर मार्जिन शेयर बेचने की इजाजत दी है. लेकिन, इसमें शर्त यह है कि ब्रोकर के पास ऐसा सिस्टम होना चाहिए, जिसमें शेयर बेचने के दिन वह शेयरों को क्लाइंट के अकाउंट से अपने अकाउंट में ट्रांस्फर कर लें. लेकिन, इसमें कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें हैं.
इस नियम का बाजार पर क्या अपस्टॉक्स ट्रेडिंग का कितना चार्ज लेता है असर पड़ेगा?
विश्लेषकों और इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि नए नियमों से ट्रेडिंग वॉल्यूम घटेगा. लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि पिछले 25 साल में जब भी अपस्टॉक्स ट्रेडिंग का कितना चार्ज लेता है नए नियम लागू किए गए, बाजार ने उसके हिसाब से खुद को ढाल लिया. नए नियम बाजार में जोखिम घटाने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए लागू किए जाते हैं.
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