भारत के सतरंगी समाज को साधने का साधन संविधान को बनाया गया, और वह आज भी है। इसके संचालन के लिए ऐसी सरकार की आवश्यकता है, जो पक्षपातपूर्ण न हो। यहाँ का न तो समाज अखंड है, न ही उपसमूह एक समान हैं। समूहों के बीच मतभेदों ने यदा-कदा हिंसा के दौर को भी जन्म दिया है।

केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान में आप का स्वागत है

केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान भारत सरकार द्वारा कृषि मंत्रालय के अधीन 3 फरवरी, 1947 को स्थापित किया गया है और बाद में वर्ष 1967 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ कार्यरत है. इन 65 वर्षों के कार्यकाल के दौरान विश्व में उष्णतकटिबंधीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान का उद्गम हुआ.

सी एम एफ आर आइ की स्थापना के प्रारंभ से लेकर इसके आकार और कद में उल्लेखनीय विकास हुआ, पर्याप्त अनुसंधान अवसंरचनाओं का विकास और योग्य कार्मिकों की भर्ती की गयी. लगभग पांच दशकों के पहले हिस्से के दौरान सी एम एफ आर आइ ने समुद्री मात्स्यिकी अवतरण के आकलन, समुद्री भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति जीवों के वर्गिकीविज्ञान एवं पखमछली तथा कवच मछली के विदोहन किए गए प्रभव की जैव-आर्थिक विशेषताओं के अनुसंधान में अपना योगदान किया.

Financial Sources

1. साधारण अंश या समता अंश ( Ordinary fraction )- समता अंश वे हैं जिनके धारकों को कंपनी के संचालन की सामान्य जोखिम को उठाना होता है। इन अंशों के धारकों कंपनी के भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति प्रबंध एवं संचालन को नियमित एवं नियंत्रित करने का अधिकार होता है।

2. पूर्वाधिकार अंश ( Preference share )- उन अंशों से हैं, जिन पर अंश धारियों को एक निश्चित दर से प्रतिवर्ष लाभांश पाने का अधिकार होता है तथा समापन के समय पूंजी की वापसी का पूर्व अधिकार भारत की आगामी वित्तीय प्रवृत्ति होता है।

3. ऋण पत्र ( Loan letter )- ऋण पत्र कंपनी के सार्वमुद्रा के अधीन जारी एक ऐसा प्रलेख है जो कंपनी पर ऋण को प्रमाणित करता है तथा ऋण की प्रमुख शर्तों को प्रकट करता है।

4. अर्जित आय का पुनः निवेश ( Re-invested income )- कम्पनी या संस्था लाभ का एक भाग भविष्य की आवश्यकता के लिए संचय करके रख लेती है। संचित लाभ को कंपनी अपनी पूंजी के रूप में प्रयोग कर लेती है। उसे अर्जित आय का पुनः निवेश कहते हैं।

अल्पकालीन वित्त के स्रोत ( Short term finance sources )

1. सार्वजनिक निक्षेप या जमाएं ( Public deposits or deposits )- एकाकी व्यापार या साझेदारी संस्थाएं केवल अपने संबंधियों से ही व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए जमाएं स्वीकार कर सकते हैं तथा केवल निजी कार्यों के लिए ही जन सामान्य से जमाएं स्वीकार कर सकते हैं।

2. व्यापारिक ऋण या साख ( Trade credit or credit ) –

  • चालू उधार खाता – कुछ स्थायी ग्राहक होते हैं। वह माल क्रय करते हैं। ऐसी दशा में उनके खातों में एक निश्चित राशि का माल उधार बेचने की शर्त हो सकती है। उधार की राशि की सीमा का निर्धारण क्रेता की आर्थिक स्थिति एवं भुगतान प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर किया जाता है।
  • विनिमय विपत्र – – विक्रेता व्यापारी माल बेचते समय ही माल के भुगतान के लिए विनिमय विपत्र लिख देता है तथा क्रेता उसे स्वीकार कर लेता है।
  • प्रतिज्ञा पत्र – कई व्यापारी माल खरीदने के साथ ही माल के मूल्य के भुगतान की तिथि का एक प्रतिज्ञा पत्र लिख देते हैं। इन में लिखी तिथि पर विक्रेता क्रेता से धन की मांग कर लेता है तथा क्रेता भुगतान कर देता है।
  • हुण्डियां – व्यापारी कई बार माल क्रय करने के साथ ही हुण्डी लिखकर देते हैं। हुण्डी में लिखित तिथि को भुगतान हो जाता है।
  • अदत्त खर्चे- कुछ खर्चे देय होने के बहुत दिनों बाद भुगतान करना पड़ता है। उदाहरण – बिक्री कर, आयकर, बिजली के बिल की राशि आदि।

भारत एक विविधतापूर्ण देश है। यहाँ अनेक समूहों के अपने विचार, परंपराएं, भाषा, खानपान, वेशभूषा, मान्यताएं आदि हैं। इस वातावरण में किसी एक समूह के विचारों को दूसरे पर थोपने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है।

18वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रांति मानवता को परिवर्तित करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसने न केवल हर समाज की आर्थिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया, बल्कि साथ ही साथ उनके शासित होने के तरीके में भी अनेक बदलाव किए।

तब से, समुदाय-केंद्रित परंपराओं और आर्थिक व्यवस्थाओं के बीच की खाई को पाटने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

चूँकि भारत जैसे विविधता वाले देश में भी आर्थिक आधुनिकीकरण की खोज की जानी थी, इसलिए शासन का लक्ष्य हमेशा ही अपनी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि को आगे बढ़ाने के तरीके को खोजने की ओर रहा।

भारत में विदेशी व्यापार की विशेषताएँ | आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका

भारत में विदेशी व्यापार की विशेषताएँ

भारत में विदेशी व्यापार की विशेषताएँ

(1) निर्यात में वृद्धि

योजनाकाल में देश के निर्यातों में निरन्तर वृद्धि की प्रवृत्ति हो रही हैं। 1950-51 में हमारा निर्यात 608 करोड़ रूपये था जो बढ़कर 1970-71 में 1535 करोड़ रूपये 1997-98 में 126286 करोड़ और 2000-2001 में 203571 करोड़ रूपये हो गया।

कोरोना से प्रभावित हुआ पर्यटन व आतिथ्य क्षेत्र, वित्त मंत्री के पिटारे से क्या मिलेगी राहत?

बजट 2021 से पर्यटन व आतिथ्य क्षेत्र की उम्मीदें

कोविड-19 महामारी से लगभग सभी क्षेत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। कोरोना काल के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान जिन क्षेत्रों को उठाना पड़ा, उनमें से एक है पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र। बीते वर्ष हवाई यात्रा से लेकर रेलवे तक, सभी सेवाएं बाधित हुई थीं। इसके मद्देनजर पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र ने आगामी आम बजट से उम्मीद जताते हुए सरकार से कई सिफारिशें की हैं, ताकि कोविड-19 महामारी के प्रकोप से उबरा जा सके।

राष्ट्रीय पर्यटन परिषद का गठन किया जाए
भारतीय पर्यटन और आतिथ्य के संघों के महासंघ (एफएआईटीएच) ने एक बयान में कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच पर्यटन को लेकर साझा दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मुख्यमंत्रियों की एक राष्ट्रीय पर्यटन परिषद का गठन किया जाए, जिसमें पर्यटन मंत्री भी शामिल हों। महासंघ ने देशभर में पर्यटन को उद्योग का दर्जा देने के लिए कहा है।

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