हालांकि, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि Royal Enfield नए इलेक्ट्रिक मॉडल लॉन्च करने की जल्दी में नहीं है।

बाजार-दर्शन-अध्ययन

पाठ का सारांश बाजार-दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के साथ-साथ अर्थनीति एवं दर्शन से संबंधित प्रश्नों बाजार का अध्ययन को सुलझाने का प्रयास किया गया है। बाजार का जादू तभी असर करता है जब मन खाली हो| बाजार के जादू को रोकने का उपाय यह है कि बाजार जाते समय मन खाली ना हो, मन में लक्ष्य भरा हो| बाजार की असली कृतार्थता है जरूरत के वक्त काम आना| बाजार को वही मनुष्य लाभ दे सकता है जो वास्तव में अपनी आवश्यकता के अनुसार खरीदना चाहता है| जो लोग अपने पैसों के घमंड में अपनी पर्चेजिंग पावर को दिखाने के लिए चीजें खरीदते हैं वे बाजार को शैतानी व्यंग्य शक्ति देते हैं| ऐसे लोग बाजारूपन और कपट बढाते हैं | पैसे की यह व्यंग्य शक्ति व्यक्ति को अपने सगे लोगों के प्रति भी कृतघ्न बना सकती बाजार का अध्ययन है | साधारण जन का हृदय लालसा, ईर्ष्या और तृष्णा से जलने लगता है | दूसरी ओर ऐसा व्यक्ति जिसके मन में लेश मात्र भी लोभ और तृष्णा नहीं है, संचय की इच्छा नहीं है वह इस व्यंग्य-शक्ति से बचा रहता है | भगतजी ऐसे ही आत्मबल के धनी आदर्श ग्राहक और बेचक हैं जिन पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई असर नहीं होता | अनेक उदाहरणों के द्वारा लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि एक ओर बाजार, लालची, असंतोषी और खोखले मन वाले व्यक्तियों को लूटने के लिए है वहीं दूसरी ओर संतोषी मन वालों के लिए बाजार की चमक-दमक, उसका आकर्षण कोई महत्त्व नहीं रखता।

उत्तर- पर्चेजिंग पावर का अर्थ है खरीदने की शक्ति पर्चेजिंग पावर के घमंड में व्यक्ति दिखावे के लिए आवश्यकता से अधिक खरीदारीकरता है और बाजार को शैतानी व्यंग्य-शक्ति देता है। ऐसे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं।

उत्तर- बाजार की चमक-दमक के चुंबकीय आकर्षण को बाजार का जादू कहा गया है, यह जादू आंखों की राह कार्य करता है। बाजार के इसी आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर भी खरीदने को विवश हो जाते हैं।

  • मन खाली होना
  • मन भरा होना
  • मन बंद होना

उत्तर-मन खाली होना - मन में कोई निश्चित वस्तु खरीदने का लक्ष्य न होना। निरुद्देश्य बाजार जाना और व्यर्थ की चीजों को खरीदकर लाना।

मन भरा होना- मन लक्ष्य से भरा होना। जिसका मन भरा हो वह भलीभाँति जानता है कि उसे बाजार से कौन सी वस्तु खरीदनी है, अपनी आवश्यकता की चीज खरीदकर वह बाजार को सार्थकता प्रदान करता है।

प्रश्न४ - ‘ जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। ’ यहां किस बल की चर्चा की गयी है?

उत्तर- लेखक ने संतोषी स्वभाव के व्यक्ति के आत्मबलकी चर्चा की है। दूसरे शब्दों में यदि मन में संतोष हो तो व्यक्ति दिखावे और ईर्ष्या की भावना से दूर रहता है उसमें संचय करने की प्रवृत्ति नहीं होती।

उत्तर- जब बाजार में कपट और शोषण बढ़ने लगे, खरीददार अपनी पर्चेचिंग पावर के घमंड में दिखावे के लिए खरीददारी करें | मनुष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए| खरीददार और दुकानदार एक दूसरे को ठगने की घात में लगे रहें , एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखाई दे तो बाजार का अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र बन जाता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना है।

उत्तर- भगतजी के मन में सांसारिक आकर्षणों के लिए कोई तृष्णा नहीं है। वे संचय, लालच और दिखावे से दूर रहते हैं। बाजार और व्यापार उनके लिए आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन मात्र है। भगतजी के मन का संतोष और निस्पृह भाव, उनको श्रेष्ठ उपभोक्ता और विक्रेता बनाते हैं।

  • पंसारी की दुकान से केवल अपनी जरूरत का सामान (जीरा और नमक) खरीदना।
  • निश्चित समय पर चूरन बेचने के लिए निकलना।
  • छ्ह आने की कमाई होते ही चूरन बेचना बंद कर देना।
  • बचे हुए चूरन को बच्चों को मुफ़्त बाँट देना।
  • सभी काजय-जय राम कहकर स्वागत करना।
  • बाजार की चमक-दमक से आकर्षित न होना।
  • समाज को संतोषी जीवन की शिक्षा देना।

उत्तर- मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ही बाजार की सार्थकता है। जो ग्राहक अपनी आवश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं वे बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। जो विक्रेता, ग्राहकों का शोषण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नही करते वे भी बाजार को सार्थक बनाते हैं।

बाजार मे एक जादू है। वह जादू आँख की तरह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है , वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है जेब भरी हो , और मन खाली हो , ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है । जेब खाली पर मन भरा न हो तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी, तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ , वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी-चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती , बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को जरूर सेंक मिल जाता है पर इससे अभिमान को गिल्टी की खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ देगी ?

पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा उपाय है वह यह कि बाजार जाओ तो खाली मन न हो । मन खाली हो तब बाजार न जाओ कहते हैं, लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए पानी भीतर हो , लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार फैला का फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा , बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा , क्योंकि तुम कुछ न कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना।

उत्तर- बाजार के रूप का जादू आँखों की राह से काम करता हुआ हमें आकर्षित करता है। बाजार का जादू ऐसे चलता है जैसे लोहे के ऊपर चुंबक का जादू चलता है। चमचमाती रोशनी में सजी फैंसी चींजें ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करती हैं| इसी चुम्बकीय शक्ति के कारण व्यक्ति फिजूल सामान को भी खरीद लेता है |

उत्तर- जेब भरी हो और मन खाली हो तो हमारे ऊपर बाजार का जादू खूब असर करता है। मन , खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण मन तक पहुँच जाता है और उस समय यदि जेब भरी हो तो मन हमारे नियंत्रण में नहीं रहता।

उत्तर- फैंसी चीजें आराम की जगह आराम में व्यवधान ही डालती है। थोड़ी देर को अभिमान को जरूर सेंक मिल जाती है पर दिखावे की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।

उत्तर- जादू की जकड़ से बचने के लिए एक ही उपाय है , वह यह है कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो , मन खाली हो तो बाजार मत जाओ।

बाजार का वर्गीकरण

स्थानीय बाजार से अभिप्राय उस बाजार से है जो किसी गांव अथवा छोटे क्षेत्र मे सीमित होता है। स्थानीय बाजार उन वस्तुओं के लिये सहयोगी होता है जिनकी मांग व्यापक नही होती अथवा उन वस्तुओं को एक स्थान के आस-पास ही क्रय अथवा बेजा जा सकता है। स्थानीय बाजार की वस्तुओं मे दूध, दही, सब्जी इत्यादि के साथ-साथ रेत, पत्थर, बाजार का अध्ययन ईंट आदि को शामिल किया जाता है।

(ब) क्षेत्रीय बाजार

क्षेत्त्रीय बाजार का क्षेत्र स्थानीय बाजार से व्यापक होता है। यहां वस्तु की मांग एवं पूर्ति एक खास क्षेत्र अथवा प्रांत की सीमा तक विस्तृत रहती है। इन प्रातीय सीमाओं के अंतर्गत वस्तु की मांग और प्रतिपूर्ति क्षेत्रीय बाजार माना जाता है जैसे राजस्थान मे लंहगा चुनरी का व्यापार, जम्मू-कश्मीर मे टोपी का व्यापार आदि।

(स) राष्ट्रीय बाजार

राष्ट्रीय बाजार का क्षेत्र पूरे देश तक फैला होता है। अर्थात् जिन वस्तुओं की मांग देश की सीमाओं को छूती है उन वस्तुओं का बाजार राष्ट्रीय बाजार कहलाता है। उदाहरणार्थ भारत की सिल्क की साड़ियां, भारत की बनी चूड़ियां इत्यादि।

(द) अंतर्राष्ट्रीय बाजार

जिन वस्तुओं के क्रेता और विक्रेता विश्व के विभिन्न क्षेत्रों मे फैले होते है उसे हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार कहते है। उदाहरणार्थ सोने चांदी एवं जवाहरात आदि का व्यापार।

2. समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार है--

(अ) दीर्घकालीन बाजार

दीर्घकालीन बाजार वह बाजार है जिसमे विक्रेता के पास पूर्ति मे वृद्धि करने के लिए पर्याप्त लम्बा समय होता है। इस बाजार मे मांग और पूर्ति की शक्तियों मे पूर्ण समायोजन हो जाता है। फलतः मूल्य बाजार का अध्ययन के निर्धारण मे मांग और पूर्ति दोनों का समान प्रभाव पड़ता है।

(ब) अति दीर्घकालीन बाजार

इस बाजार मे विक्रेता के पास इतना अधिक समय होता है कि वह उपभोक्ता के स्वभाव, रूचि और फैशन के अनुसार उत्पादन कर सकता है।

(स) अल्पकालीन बाजार

अल्पकालीन बाजार वह बाजार है जिसकी पूर्ति कुछ सीमा तक बढ़ाई जा सकती है, किन्तु यह वृद्धि मांग के अनुपात मे नही होती है।

(द) अति अल्पकालीन बाजार

जब वस्तु के विक्रेता के पास बाजार का अध्ययन पूर्ति मे वृद्धि करने का समय बिल्कुल भी उपलब्ध नही होता, तब इस प्रकार के बाजार को अति अल्पकालीन बाजार कहते है। जैसे-- हरी सब्जियां, दूध, दही आदि।

3. प्रतियोगिता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

प्रतियोगिता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार से है--

(अ) पूर्ण प्रतियोगिता बाजार

जब बाज़ार मे किसी वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता होती है तब बाजार को पूर्ण प्रतियोगिता बाजार कहा जाता है। इस प्रकार के बाजार मे क्रेता और विक्रेता को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।

(ब) अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार

अपूर्ण बाजार की व्याख्या करते हुए बेन्हम ने लिखा है," अपूर्ण बाजार उस दशा मे कहा जायेगा जब क्रेताओं और विक्रेताओं को या कुछ क्रेताओं और कुछ विक्रेताओं को एक दूसरे के द्वारा दिया हुआ या मांग हुआ मूल्य का ज्ञान नही होता है।"

इस बाजार मे क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या कम होती है तथा उन्हे बाजार का भी पूर्ण ज्ञान नही होता है। प्रमुख रूप से इस बाजार मे वस्तु विभेद किया जाता है।

एकाधिकार बाजार उस उस दशा को कहा जायेगा जिसमे वस्तु का अकेला उत्पादन होता है और उसकी स्थानापन्न वस्तु का भी कोई और उत्पादन नही होता है।

4. कार्य के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

कार्य के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार से है--

(अ) विशिष्ट बाजार

कभी कभी कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण कुछ वस्तुओं का बाजार एक साथ कुछ क्षेत्रों मे या स्थानों मे क्रेन्द्रित हो जाता है। उसे विशिष्ट बाजार कहा जाता है।

(ब) मिश्रित बाजार

जब एक ही बाजार मे एक से अधिक वस्तुओं या मिली-जुली वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है, तब उस बाजार को मिश्रित बाजार या सामान्य बाजार कहा जाता है।

(स) नमूनों द्वारा बाजार

वर्तमान समय मे बड़े पैमाने का क्रय विक्रय नमूनों के आधार पर किया जाने लगा है। माल बेचने वाली मिलों व फर्मों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को वस्तुओं के नमूने बाजार का अध्ययन दे दिये जाते है, और वे उन नमूनों को दिखाकर माल का आर्डर बुक कर लेते है। इस प्रकार की व्यवस्था कपड़े, ऊन तथा रंग-पेण्ट, आदि मे अधिकाधिक लोकप्रिय होती जा रही है।

(द) श्रेणियों के आधार पर बाजार

वर्तमान मे ग्रेज के द्वारा वस्तुओं के क्रय-विक्रय को बहुत अधिक महत्व दिया जा रहा है। इस व्यवस्था मे वस्तु को कई ग्रेडों मे बांट दिया जाता है और इन्हीं ग्रेडों के आधार पर वस्तुओं का सौदा किया जाता है।

5. वैधानिकता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

वैधानिकता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार है--

जिस बाजार मे ग्राहकों को सरकार द्वारा निर्यात किये गये मूल्यों पर वस्तुएं मिलती है, उसे वैध बाजार कहा जाता है। जैसे, राशन की दुकान आदि।

जब किसी वस्तु का क्रय विक्रय सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से कम या अधिक होता है, तब उस बाजार को अवैध बाजार कहा जाता है।

6. वस्तु की प्रकृति के आधार पर बाजार का वर्गीकरण

वस्तु की प्रकृति के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार है--

जिस बाज़ार मे उत्पादित वस्तुओं के क्रय-विक्रय के सौदे होते है, उसे उपज बाजार कहा जाता है।

(ब) स्कन्ध बाजार

जिस बाज़ार मे अंश, प्रतिभूतियों तथा स्टाॅक, आदि के बाजार का अध्ययन सौदे होते है, उसे उपज बाजार कहते है।

जिस बाज़ार मे सोने-चांदी के क्रय-विक्रय के सौदे होते है, उसे धातु बाजार कहा जाता है।

Royal Enfield EV: लॉन्च से पहले बाजार की उम्मीदों का अध्ययन करने वाला ब्रांड

Royal Enfield वर्तमान में अपने आगामी इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर मॉडल के लिए ग्राहकों की अपेक्षाओं का अध्ययन कर रही है। Royal Enfield के मालिक Eicher Motors के एक अधिकारी के मुताबिक, इनपुट लागत कुछ हद तक स्थिर हो गई है और निर्माताओं को आगामी बाजार का अध्ययन त्योहारी सीजन में मांग बढ़ने की उम्मीद है।

Royal Enfield EV: लॉन्च से पहले बाजार की उम्मीदों का अध्ययन करने वाला ब्रांड

Royal Enfield EV: लॉन्च से पहले बाजार की उम्मीदों का अध्ययन करने वाला ब्रांड

हालांकि, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि Royal Enfield नए इलेक्ट्रिक मॉडल लॉन्च करने की जल्दी में नहीं है।

मनीकंट्रोल की एक पुरानी रिपोर्ट बताती है कि Royal Enfield पिछले कुछ समय से इस सेगमेंट का मूल्यांकन कर रही है। हालांकि, कंपनी अभी भी उस सही सेगमेंट का मूल्यांकन कर रही है जिसमें बाइक को लॉन्च किया जा सकता है।

Royal Enfield का यह भी कहना है कि उन्होंने इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिलों के कुछ प्रोटोटाइप बनाए हैं। ब्रांड का यह भी कहना है कि इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल बाजार में जरूर उतारी जाएंगी। हालाँकि, ‘कब’ का सवाल अभी भी बना हुआ है। एक अधिकारी के अनुसार पहली इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल के लिए Royal Enfield ने पहले ही कुछ सेगमेंट पर विचार कर लिया है।

Hero MotorCorp, Bajaj, TVS, Suzuki और यामाहा जैसे मुख्यधारा के निर्माताओं ने अभी तक बाजार में एक इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल लॉन्च नहीं की है। Bajaj और हीरो इलेक्ट्रिक से इलेक्ट्रिक स्कूटर उपलब्ध हैं। हालांकि, भारतीय इलेक्ट्रिक स्कूटर बाजार में ज्यादातर स्कूटर नए खिलाड़ियों के हैं।

वर्तमान में, EV क्षेत्र पर शासन करने वाले स्टार्ट-अप

वर्तमान में, बढ़ते बाजार में भारत में किफायती इलेक्ट्रिक स्कूटर का बोलबाला है। एथर एनर्जी, Ola Electric, टोर्क मोटर्स, रिवोल्ट, ओकिनावा, अल्ट्रावियोलेट और Intellicorp जैसे स्टार्ट-अप के पास पहले से ही अपने उत्पाद बाजार में हैं या निकट भविष्य में अपनी ईवी मोटरसाइकिल लॉन्च करने के लिए काम कर रहे हैं।

इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स का मार्केट साइज भी समय के साथ बढ़ता जा रहा है। पिछले साल इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर मार्केट में करीब 20 फीसदी का उछाल देखा गया था। वॉल्यूम के लिहाज से पिछले साल के वित्तीय वर्ष की तुलना में कुल बिक्री लगभग 152,000 यूनिट थी। मुख्यधारा के निर्माता भी इलेक्ट्रिक वाहनों पर काम कर रहे हैं लेकिन Royal Enfield को छोड़कर किसी ने भी अपनी भविष्य की रणनीति साझा नहीं की है।

नई Bullet 350 जल्द आ रही है

ऑल-न्यू Hunter 350 को लॉन्च करने के बाद, Royal Enfield अपने शानदार इतिहास के सबसे प्रतिष्ठित मॉडल, Bullet 350 के लिए बहुप्रतीक्षित अपडेट लॉन्च कर सकती है।

मोटरसाइकिल के पारंपरिक सार से समझौता किए बिना, नए Royal Enfield Bullet 350 के डिजाइन में कुछ सूक्ष्म बदलाव किए गए हैं। इसमें गोल हेडलैंप और फ्यूल टैंक और गोल किनारों के साथ त्रिकोणीय साइड पैनल बरकरार हैं।

नई Royal Enfield Bullet 350 नए सिंगल-सिलेंडर, एयर-कूल्ड, 349cc जे-सीरीज इंजन के लिए मौजूदा 346cc पावरट्रेन को हटा देगी, जो पहले ही Meteor, Classic और Hunter में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। 20.2 पीएस के पावर आउटपुट और 27 एनएम के पीक टॉर्क आउटपुट के साथ, यह नया इंजन Bullet 350 के मौजूदा पुराने-जेन इंजन की तुलना में बहुत अधिक परिष्कृत और कंपन-मुक्त महसूस करता है।

नई Royal Enfield Bullet 350 में मौजूदा सस्पेंशन यूनिट को बरकरार रखा जा सकता है, जिसमें फ्रंट में टेलिस्कोपिक फोर्क्स और रियर में हाइड्रोलिक कॉइल स्प्रिंग शामिल हैं। ब्रेक भी समान होने की उम्मीद है, Bullet 350 में रियर डिस्क ब्रेक नहीं मिलता है। फ्रंट डिस्क और रियर ड्रम ब्रेक सेटअप के साथ, Bullet 350 में केवल सिंगल-चैनल ABS की सुविधा जारी रह सकती है। हालाँकि, टायरों की चौड़ाई बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन Classic 350 के टायरों की तुलना में संकरे होंगे।

वायदा बाजार : जोखिम कम मुनाफा ज्यादा, लेकिन पहले रखें ये ध्यान

कमोडिटी यानी वायदा बाजार ग्लोबल बाजार सिस्टम की नींव में से एक है. शेयर मार्केट की तरह कमोडिटी बाजार में भी खरीद-फरोख्त की जाती है, लेकिन कुछ अलग तरीके से.

वायदा कारोबार में हैं कई मौके पर जानकारी होना जरूरी (फाइल फोटो)

कमोडिटी यानी वायदा बाजार ग्लोबल बाजार सिस्टम की नींव में से एक है. शेयर मार्केट की तरह कमोडिटी बाजार में भी खरीद-फरोख्त की जाती है, लेकिन कुछ अलग तरीके से. शेयर बाजार में हम किसी कंपनी के अंश खरीदकर उसके नफा-नुकसान में हिस्सेदार बनते हैं, लेकिन कमोडिटी बाजार में कच्चे माल की खरीद-फरोख्त की जाती है. जिन चीजों की इस्तेमाल एक इंसान रोजमर्रा के जीवन में करता है, कमोडिटी में वे सभी चीजें आती हैं, जैसे दाल, चावल, मसाले, रुई, सोना, चांदी, लोहा आदि. इस बाजार में ज्यादातर कृषि उत्पादों को शामिल किया गया है.

इस्तेमाल में लाई जाने वाली हर वस्‍तु कमोडिटी में आती है. कमोडिटी मार्केट में सामान के पुराने तथा नए भावों के आधार पर भविष्य के भावों में सौदे किए जाते हैं. यहां लाभ के लिए शेयर बाजार की तरह लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता. डिमांड के हिसाब से वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है. यहां कारोबारी किसी भी चीज के दाम आसमान पर चढ़ा देते हैं और किसी के उतार देते हैं. देश में बाजार का अध्ययन खाने-पीने की चीजों में एकाएक महंगाई के पीछे कहीं हद तक वायदा बाजार का हाथ होता है. इसलिए जब भी किसी वस्तु के दाम अचानक आसमान छूने लगते हैं तो सरकार को मजूबरन उस वस्तु के वायदा बाजार पर रोक लगानी पड़ती है. इस बाजार में कीमतें मांग और सप्लाई के नियम से तय होती हैं.

अगर आप कमोडिटी की थोड़ी बहुत भी जानकारी रखते हैं तो थोड़े बहुत निवेश में अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं. जैसे बाजार का अध्ययन कि भारतीय मसालों की इंटरनेशनल मार्केट में बहुत मांग होती है, इसलिए मसालों के सौदे करके आप अच्छा मुनाफा हासिल कर सकते हैं. कमोडिटी मार्केट में एक तय तारीख तक के लिए सौदे किए जाते हैं. हर महीने के आखिरी गुरूवार को सौदों का निपटारा होता है. अगर आप चाहें तो अपने सौदे को अगले महीने से भी आगे बढ़ा सकते हैं. वायदा कारोबार कमोडिटी एक्सचेंज में होता है. देश में एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स, एनएमसीई और आईसीईएक्स प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंज हैं. वर्तमान में वायदा लेन-देन के लिए राष्‍ट्रीय स्‍तर के पांच केंद्र हैं, इनमें 113 जिंसों की वायदा खरीद-बिक्री होती है. इसके अलावा 16 ऐसे केन्‍द्र हैं, जहां पर वायदा बाजार कमीशन द्वारा जिंसों में ही सौदे होते हैं. वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) का मुख्‍यालय मुंबई में है.

कमोडिटी बाजार की शुरूआत 1875 में बॉम्‍बे कॉटन ट्रेड एसोशिएशन के साथ हुई थी. यहां पर केवल कॉटन के सौदे होते थे. इसके बाद 1900 में गुजराती व्‍यापारी मंडली ने बादाम, बीज और कपास के व्‍यापार के सौदे करने शुरू किए. 2007 में अभिषेक बच्चन की फिल्म 'गुरु' वायदा बाजार के खेल पर ही आधारित थी.

अगर आप कृषि जिंसों का कारोबार करना चाहते हैं तो उस जिंस का उत्‍पादन, मांग और सप्‍लाई की जानकारी होनी चाहिए. फसल मौसम में उसकी आवक, मौसम की जानकारी और आने वाले समय में फसल कैसी होगी, कितनी फसल बाजार में आएगी, उसका क्या भाव रहेगा आदि की जानकारी होनी चाहिए.बाजार का अध्ययन अगर आप धातु में सौदा करना चाहते हैं तो उसके उत्पादन, आयात निर्यात और उद्योग जगत में उस धातु के इस्तेमाल की जानकारी का गहराई से अध्‍ययन करना चाहिए.

वायदा बाजार में दो तरह से सौदे होते हैं एक तो फ्यूचर क्या है फ्यूचर और ऑप्शन के आधार पर. इसमें अगर सौदों की खरीद-फरोख्त के लिए वस्तु के वास्तिक मूल्य की जरूरत नहीं होती है, केवल मार्जिन मनी पर ही सारा खेल चलता है. फ्यूचर ट्रेडिंग के लिए कम निवेश की जरूरत होती है. यहां रोजाना नफा-नुकसान का हिसाब होता है. नुकसान होने पर ट्रेडर को उसकी भरपाई ब्रोकर को करनी होती है

बाजार पर निबंध / Essay on Market in Hindi

बाजार हमारा निकटवर्ती सार्वजनिक स्थान है बाजार का अध्ययन । यह हमारे पड़ोस में स्थित व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र होता है । यहाँ व्यापारियों और ग्राहकों का जमावड़ा होता है । यहाँ से लोग अपने दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुएँ खरीदते हैं । बाजार लोगों की आवश्यकता की पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

बाजार शहरों, कस्बों और गाँवों में भी होते हैं । शहरों में स्थायी बाजार होते हैं । यहाँ साप्ताहिक बाजार भी लगते हैं । कस्बों और गाँवों के बाजार प्राय: अस्थायी होते

हैं । यहाँ के बाजार सप्ताह में एक या दो दिन लगा करते हैं । यहाँ अपराह्‌न लगने वाले बाजार सायंकाल तक समाप्त हो जाते हैं । शहरों के स्थायी बाजार सुबह से शाम तक सप्ताह के छह दिनों तक खुले होते हैं । ये बाजार सजे- धजे तथा सभी प्रकार की आवश्यक वस्तुओं से सज्जित होते हैं । यदि महानगरों के बाजार देखें तो यहाँ और भी रौनक रहती है । इनकी सजावट देखते ही बनती है ।

बाजार में सब कुछ बिकता है । सब्जियाँ, कपड़े, अनाज, फल, रसोई की अन्य चीजें, घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ, स्टेशनरी की चीजें, गहने आदि यहाँ उपलब्ध होते हैं । यहाँ घड़ियाँ, टेलीविजन सेट, रेडियो, फर्नीचर, कृषि यंत्र, सजावटी वस्तुएँ, खिलौने, मोबाइल फोन, बिजली के सामान, मिठाइयाँ, नमकीन तथा खाने-पीने की सभी चीजें मौजूद होती हैं । बड़े बाजारों में साइकिल, स्कूटर, मोटर साइकिल, कार आदि वाहन भी बिकते हैं । जिसे जो चाहिए, खरीद ले । एक पसंद न हो तो दूसरी खरीद ले । कपड़ों, जूतों की दस दुकानें हैं, मिठाइयों की भी अनेक दुकानें हैं । कतारों में फलों और सब्जियों की दुकानें हैं ।

पर गाँवों, कस्बों तथा शहरों के साप्ताहिक अस्थायी बाजारों में सब कुछ नहीं मिलेगा । यहाँ सब्जियाँ, फल, कपड़े, घरेलू उपकरण तथा खाने-पीने की चीजें ही मिलेंगीं । यहाँ वे चीजें ही मिलेंगीं जिनकी आवश्यकता गृहणियों को हर रोज होती है । व्यापारी यहाँ आए, दुकानें सजाईं और आवाजें लगाकर अपनी वस्तुएँ बेचने लगे । ग्राहक आए, बाजार का चक्कर लगाया और दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने लगे । मोल-तोल भी यहाँ खूब होता है । लोग जानते हैं कि दुकानदार बढा-चढ़ाकर कीमतें लगा रहे हैं । टमाटर 12 रु. किलो है तो 10 रु. किलो मिल सकता है । गोभी 20 रु. किलो है तो मोल-तोल के पश्चात् 16 रु. किलो मिल सकता है । अत: गृहणियों अच्छी तरह जाँच-परखकर ही खरीदारी करती हैं ।

अब चलें शहर के बाजार में जहाँ हर चीज उपलब्ध है । कुछ दुकानदार थोक में वस्तुएँ बेचते हैं । थोक बाजार में एक ही प्रकार की वस्तु अधिक मात्रा में लेने पर सस्ती पड़ती है । छोटे व्यापारी तथा खुदरा व्यापारी थोक में वस्तुएँ खरीद लेते हैं और मुनाफा सहित खुदरा बेच देते हैं । आपस में इनका सामंजस्य होता है । वस्तुओं की कीमतें घटती-बढ़ती रहती हैं । यहाँ माँग और पूर्ति का नियम काम करता है । माँग में वृद्धि हुई तो कीमतें बढ़ गईं और माँग में कमी आई तो कीमतें घट गईं । सजग व्यापारी कीमतों में उतार-चढ़ाव पर प्रतिदिन नजर रखते हैं ।

महानगरों में बड़े-बड़े बाजार होते हैं । यहाँ की चमक-दमक देखते ही बनती हैं । इन बड़े और भव्य बाजारों को सुपर बाजार कहा जाता है । यहाँ आवश्यकता की सभी

चीजें एक ही स्थान पर अर्थात् एक ही परिसर में मिल जाती हैं । अब तो मॉल बन गए हैं । बड़े-बड़े मॉल्स शहरों की पहचान बनते जा रहे हैं । इक्कीसवीं सदी में शॉपिंग माँल्स बाजारवाद को बढ़ावा देने में बहुत मदद कर रहे हैं । बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी अब सब्जियाँ, फल तथा परचून की वस्तुएँ बेच रही हैं ।

बाजार का महत्त्व सब जानते हैं । बाजार देश की अर्थव्यवस्था के आधार होते हैं । यहाँ क्रेताओं और विक्रेताओं का सम्मिलन होता है । यहाँ लाखों, करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं । यहाँ समाज के हर श्रेणी के लोग आते हैं । हर कोई अपनी जेब देखकर खरीदारी करता है । बाजारों के अलग- अलग नाम और कोटियाँ हैं । बाजारों की अपनी पहचान है । बाजार हमारी आवश्यकता की पूर्ति में बहुत मददगार होते हैं ।

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