अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान ठहराये जाने के पक्ष में निम्न तर्क दिये आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य जाते हैं-
प्रावैगिक अर्थशास्त्र | प्रावैगिक अर्थशास्त्र की विशेषताएं | प्रावैगिक अर्थशास्त्र का महत्व
प्रावैगिक अर्थशास्त्र के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में होने वाले निरंतर परिवर्तनों वाईएन परिवर्तनों को प्रभावित करने वाले तत्व तथा “परिवर्तनों की प्रक्रिया”का विश्लेषण किया जाता है। प्रावैगिक अर्थशास्त्र की परिभाषा के संबंध में अर्थशास्त्र एक बात नहीं है। प्रमुख अर्थशास्त्रियों की परिभाषाएं निम्न प्रकार हैं-
प्रो. जे.आर. हिक्स के अनुसार, “आर्थिक सिद्धांत के उन भागों को प्रावैधिक अर्थशास्त्र कहते हैं,जिनमें प्रत्येक मात्रा का तिथिकरण करना आवश्यक होता है।”
प्रो.हैरोड के अनुसार,आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य “परिवर्तनशील अर्थशास्त्र से अभिप्राय अधिगम आंकड़ों में निरंतर होने वाले परिवर्तनों के अध्ययन से है। वे परिवर्तन एकबारगी होने वाले परिवर्तनों से भिन्न होते हैं।”
प्रावैगिक अर्थशास्त्र की विशेषताएं–
उपायुक्त परिभाषाओं के अध्ययन से प्रावैगिक अर्थशास्त्र की निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है-
- इस के अंतर्गत ‘परिवर्तन की प्रक्रिया में समय को स्पष्ट मान्यता’ दी जाती है।
- यह अर्थव्यवस्था के तुरंत समायोजन की मान्यता को स्वीकार नहीं करना है।
- प्रावैगिकअर्थशास्त्र यह बताता है कि किस प्रकार एक स्थिति का पिछली स्थिति में विकास होता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि “प्रावैगिक विश्लेषण का संबंध समय व विकास दोनों से ही है।”
- प्रावैगिक विश्लेषण, शाम्य को प्रभावित करने वाली आधारभूत दशाओं में होने वाले परिवर्तनों का भी अध्ययन करता है। वास्तव में, रुचि, तकनीक, जनसंख्या, साधन व संगठन जैसे आर्थिक तत्वों में परिवर्तन होने के कारण शाम्य अपनी स्थिति में विचलित होता रहता है।
प्रावैगिक अर्थशास्त्र का महत्व–
प्रावैगिक अर्थशास्त्र, स्थैतिक की अपेक्षा वास्तविकता के अधिक निकट है क्योंकि (अ) यह स्थैतिक अर्थशास्त्र की तारा वास्तविक मान्यताओ, जैसे-पूर्ण प्रतियोगिता, पूर्ण ज्ञान इत्यादि पर आधारित नहीं है तथा (ब) यह परिवर्तनों का अध्ययन करता है अर्थात व्यवहार के निर्धारकों, जैसे-रुचि, साधनों व प्रविधि आदि को स्थिर व अपरिवर्तनशील नहीं मानता।
- समस्याओं का अध्ययन– बहुत-सी समस्याओं का अध्ययन ‘प्रावैगिक’ द्वारा ही संभव है, जैसे-(अ)मानसिक संतुलन तथा निरंतर परिवर्तनों के परिणास्वरुप उत्पन्न होने वाली समस्याओं का अध्ययन प्रावैगिक अर्थशास्त्र ही कर सकता है।
(ब) जनसंख्या संबंधी समस्याएं, व्यापार चक्र, विनियोग लाभ के सिद्धांत आदि का अध्ययन तथा उचित विश्लेषण प्रावैगिक अर्थशास्त्र द्वारा ही किया जा सकता है।
5 गुना हुआ था सब्सक्राइब
Dharmaj Crop Guard के आईपीओ में क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIB) के लिए 50 फीसदी हिस्सा रिजर्व था, जिसे 48.21 गुना सब्सक्रिप्शन मिला था. वहीं, नॉन-इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स की कैटेगरी में 52.29 गुना सब्सक्रिप्शन मिला. इसके अलावा, रिटेल इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स (RII) के लिए 35 फीसदी रिजर्व हिस्से को 21.53 गुना और कर्मचारियों के हिस्से को 7.48 गुना सब्सक्रिप्शन मिला.
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IPO GMP: ग्रे मार्केट से कैसे संकेत
Dharmaj Crop Guard के आईपीओ का ग्रे मार्केट में क्रेज बना हुआ है. ग्रे मार्केट में शेयर का भाव 55 रुपये से 65 रुपये के प्रीमियम पर दिख रहा है. अपर प्राइस बैंड 237 रुपये के लिहाज से इसकी लिस्टिंग 290 से 300 रुपये के भाव पर हो सकती है. यानी इसमें 23 से 25 फीसदी रिटर्न मिल सकता है.
ब्रोकरेज हाउस आनंद राठी के अनुसार कंपनी का ऑपरेशन से आने वाला राजस्व FY2020 से FY2022 के दौरान 41.02 फीसदी सीएजीआर से बढ़ा है. वहीं टैक्स के बाद मुनाफा (PAT) इस दौरान 63.30 फीसदी CAGR से बढ़ा है. कंपनी ने पास मजबूत डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और मजबूत ब्रॉन्डेड प्रोडक्ट हैं. ग्राहकों के साथ मजबूत संबंध है. आगे कंपनी का मुनाफा और मार्जिन बेहतर हो सकता है.
कंपनी के आउटलुक पर राय
ब्रोकरेज हाउस Swastika Investmart का कहना है कि पेस्टिसाइड इंडस्ट्री में जो ग्रोथ बनी है, यह मोमेंटम जारी रहने का अनुमान है. घरेलू बाजार में फूड कंजम्पशन बढ़ने का फायदा इसे मिलेगा. एग्री सेक्टर पर सरकार का फोकस, निर्यात से डिमांड बढ़ने से भी कंपनी को फायदा होगा. भारत में अभी भी पेस्टिसाइड और एग्रोकेमिकल्स की पैठ कम है, जो इस सेक्टर में ग्रोथ का अवसर देता है. चीन पर निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भरता में सुधार करने के सरकार के उद्देश्य से भी इस इंडस्ट्री को लाभ मिलेगा.
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सिलहट-सिलचर महोत्सव 2022 का उद्देश्य क्या है?
- त्योहार का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से अलग हुए जुड़वां शहरों एवं उनके लोगों के सामान्य मूल्यों तथा साझा विरासत का पुनर्विलोकन करना है।
- शहर में होने वाले कार्यक्रम में दोनों क्षेत्रों के व्यंजन, कला, शिल्प, संस्कृति एवं स्थानीय उत्पादों का प्रदर्शन किया जाएगा, जो घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध साझा करते हैं।
- दोनों पक्षों के प्रतिष्ठित लोग आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
- त्योहार स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन एवं शिक्षा क्षेत्रों में अवसरों का प्रदर्शन करेगा।
- 1947 में विभाजन के पश्चात, असम के बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या वाला सिलहट जिला पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया एवं वर्तमान में बांग्लादेश का हिस्सा है।
- सिलहट के अनेक लोगों को अपनी मातृभूमि से पलायन करना पड़ा एवं शरणार्थियों के रूप में भारत में शरण लेनी पड़ी।
- जबकि उस समय का तनाव कुछ ऐसा नहीं है जिसे सरलता से विस्मृत नहीं किया जा सकता है, सीमा के दोनों किनारों पर “पुराने लोगों को लोगों से जुड़ने का उत्सव मनाने” का जश्न मनाया जा सकता है।
- अतः, सिलहट एवं सिलचर ने युगों से घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध साझा आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य किए हैं तथा यह त्योहार दोनों देशों के दो पड़ोसी क्षेत्रों के मध्य लोगों के मध्य संपर्क को और सुदृढ़ करेगा।
निष्कर्ष
इस सिलचर-सिलहट उत्सव से मित्रता की सदियों पुरानी भावना को बढ़ाने एवं दोनों पड़ोसी देशों के मध्य अच्छे संबंध स्थापित करने की संभावना है, जो विविध किंतु समान संस्कृति, परंपरा एवं बहुत कुछ साझा करते हैं। इसके अतिरिक्त, इस आयोजन में लोग विभिन्न आदिवासी संस्कृतियों, व्यंजनों, कला, शिल्प एवं मनोरंजन का भी आनंद ले सकते हैं।
प्र. सिलहट सिलचर से कब अलग हुआ?
उत्तर. 1947 में विभाजन के पश्चात, असम के बहुसंख्यक मुस्लिम लोगों वाला सिलहट जिला पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया एवं वर्तमान में बांग्लादेश का हिस्सा है।
प्र. सिलहट-सिलचर महोत्सव 2022 के पीछे क्या विचार है?
उत्तर. यह आयोजन (सिलहट-सिलचर महोत्सव 2022) भारत की आजादी के 75 साल एवं पाकिस्तान से बांग्लादेश की मुक्ति की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में होगा।
अर्थशास्त्र की प्रकृति | अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला | Nature of economics in Hindi | Economics is science or art in Hindi
‘विज्ञान’ ज्ञान की वह शाखा है जिसमें किसी विषय का व्यवस्थित एवं क्रमबद् अध्ययन किया जाता है तथा जो कार्यों के कारण एवं परिणाम के बीच पारस्परिक सम्बन्ध बताताहै। यह तथ्यों पर आधारित होता है, यद्यपि तथ्यों के संग्रह मात्र को विज्ञान नहीं कह सकते हैं।
अर्थशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि – (1) यह आर्थिक घटनाओं के कारणों एवं परिणामों के मध्य व्यवस्थित ढंग से सम्बन्ध स्थापित करता है। (2) इसमें वैज्ञानिक विश्लेषण की विभिन्न रीतियों का प्रयोग किया जाता है। (3) आर्थिक तथ्यों के मापने के लिए अर्थशास्त्री के पास द्रव्य का मापदण्ड होता है, जिससे अर्थशास्त्री के निष्कर्षों में बहुत कुछ निश्चितता आ जाती है। (4) इसमें गणित का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, जिसके फलस्वरूप अर्थशास्त्री की भविष्यवाणी करने की शक्ति बढ़ गयी है ।
अर्थशास्त्र एक कला है-
‘कला’ यथार्थ में किसी आदर्श तक पहुँचने की रीति है। अर्थशास्त्र में कला का अर्थ उद्देश्य-विशेष को प्राप्त करने के ढंग से लिया जाता है। किसी कार्य को करने या किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए व्यावहारिक नियमों का प्रतिपादन ही ‘कला’ है। कला ऐसे पुल के समान है, जो वास्तविक एवं आदर्श विद्वानों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करती है। जहाँ ‘वास्तविक विज्ञान’ वास्तविक स्थिति का और ‘आदर्श विज्ञान’ वांछनीय या आदर्श स्थिति का ज्ञान कराता है, वहीं कला वांछनीय स्थिति की प्राप्ति हेतु व्यावहारिक नियम बतलाती है।
अर्थशास्त्र एक कला है। कलाकार के रूप में अर्थशास्त्री बताता है कि उत्पत्ति के साधनों को किस प्रकार से संयोजित करना चाहिए। बढ़ रहे मूल्यों को स्थिर रखने के लिए क्या उपाय करना चाहिए? रोजगार और आय में कैसे वृद्धि की जा सकती है ? इसमें आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यावहारिक तरीकों को बताया जाता है।
भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र
कांडला में 1965 में एशिया के पहले ईपीजेड के खोले जाने के साथ, भारत निर्यात को बढावा देने में निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (ईपीजेड) मॉडल की प्रभावोत्पादकता स्वीकार करने वाले पहले देशों आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य में एक था । नियंत्रणों एवं मंजूरियों की विविधता; विश्व स्तरीय अवसरंचना का अभाव; और आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य एक अस्थिर वित्तीय व्यवस्था के कारण सामने आने वाली दिक्कतों का सामना करने तथा भारत में अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए, अप्रैल 2000 में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) नीति की घोषणा की गई ।
इस नीति का उद्देश्य केंद्र एवं राज्य दोनों ही स्तर पर न्यूनतम संभावित विनियमनों के साथ आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहन तथा गुणवत्ता – पूर्ण अवसंरचना आर्थिक विश्लेषण के उद्देश्य और उद्देश्य की सहायता से सेज को आर्थिक विकास का वाहक बनाना था । भारत में सेज 1.11.2000 से 09.02.2006 तक विदेश व्यापार नीति के प्रावधानों के तहत कार्यरत रहा और आवश्यक वैधानिक प्रावधानों के माध्यम से वित्तीय प्रोत्साहनों को प्रभावी बनाया गया ।
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